मेरी सोच
यहां नेता-अभिनेता सभी बिक जाते है,
कोई कौड़ियोंं के दाम तो, किसी का दाम करोड़।
चाहे राजतंत्र हो, या लोकतंत्र हो,
दिख जाता है इन सब का कूड़ा राजनीति-तंत्र
बड़े-बड़े नेताओं की लगती है इसमें बोली,
देखो कैसे जनता से खेलते है ये आंख मिचोली।
राजनीति में देखो इनकी लीला,
सियासत की कौम सड़ा रही कबीला।
यहां योग्य भी अयोग्य बन जाता और,
कमजोरी में यहां गंधा बाप कहलाता।
लोकतंत्र का पत्थर काट रहा है हीरा,
नेता-अभिनेता सब चाट रहे है खीरा।
खेल-खिलाड़ियों में अब हो रहे है पंगे,
बाँलीबुड-राजनीति में सब हो गये है नंगे।।
दीपक कोहली
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