लिखता हूँ एक कविता, कुछ लाइनों में,
ऐ मेरे वतन, तेके उन जवानों के लिए।
जिन्होंने अपना सीना चीर दिया गोलियों से,
और नहीं आने दी तेरे आंगन में कोई दरार।।
मुझे भी शौक था तेरी रक्षा करने करने का,
पर साथ नहीं दिया इस शरीर ने।
ऐ मेरे वतन तेरे उऩ जवानें को मेरा सलाम,
जिन्होंने तेरे लिए अपनी कुर्बानी दी।।
उन पहाड़ों और जंगलों में रहने का शौक था मुझे
भी, पर क्या बताऊ मां ने मुझे कबूला नहीं।
ऐ मेरे वतन तेरे जवानों को मेरा नमन्,
जिन्होंने तेरे लिए अपना बलिदान दिया।।
आग और पानी से खेलना चाहता था तेरे लिए,
लेकिन उस खुदा को कबूल नहीं था मेरा यह खेल।
जिसने बना दिया मुझे एक कवि और एक मेल,
ऐ मेरे वतन तेरे उन जवानों को मेरा अदामा,
जिन्होंने हमारे लिए अपनी जान बाजी लगाई है।।
लिखता हूं एक कविता, कुछ लाइनों में.............।।
दीपक कोहली
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