एक रचना
एक रचना
एक रचना सोचता हूं मैं अक्सर,
मगर रच न सका आज तक...।
संमदर से भी ज्यादा गहरा है ,वो
पर्वतों से भी ज्यादा ऊंचा.....।।
हर वो लम्हा मैं रचना चाहता हूं, जो ईश्वर-खुदा नहीं रच पाया । आकाश से ज्यादा चौड़ा व पाताल से ज्यादा गहरा,मैं रचना चाहता हूं।।
हर वो चीज मेैं रचना चाहता हूं,
जो इस पृथ्वी लोक में बसा हो।
चाहे यहां के मानव जाति हो, या
यहां के ऊचे पहाड़ और गगन हो।।
हर उस भूमि को मैं रचना चाहता हूं. जो
मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा में लिप्त हो।
चाहे कैलाश-महादेव हो या ख्वाजा अली
-अमृतसर गुरुद्वारा क्यों ना हो।।
एक रचना सोचता हूं मैं अक्सर ,
मगर रच न सका आज तक..।।
दीपक कोहली
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