गोपाल बाबू गोस्वामी जी, आओ आज बताते हैं।
उत्तराखंड को दी उनकी, सौगातें याद दिलाते हैं।।
कहॉं लिए वह जन्म और, प्रसिद्धि कैसे पाए -
आओ आज फिर से हम, बात यह दोहराते हैं।।
उससे आगे चौखुटिया के, गॉंव चॉंदीखेत।।
चॉंदीखेत में जन्म लिया, श्री मोहन गिरी के द्वार।
माता चनुली देवी के तुम, खुशियों के संसार।।
बाल्यकाल में पिता आपके, छोड़ चले संसार।
तब फिर कंधे आपके, आया घर का भार।।
करी पढ़ाई आठवीं, निकल गये परदेश।
नहीं मिला परदेश में, एक अच्छा परिवेश।।
पलट गये फिर हारकर, जन्मभूमि की ओर।
मन लगाया खेती में, सम्भली जीवन की डोर।।
गायन लेखन आपका, रहा सदा ही शौक।
सुनकर जनता आपको, जाती थी तब चौंक।।
गायन के फिर क्षेत्र में, बढ़ गये आगे आप।
उत्तराखंड संग देश में, छोड़ी अपनी छाप।।
कैल बजै मुरली आपका, सबसे पहला गीत।
बेडू पाको बारोमासा, से सबको है प्रीत।।
ऐसे सुंदर गीत अनेकों, दिए हमें उपहार।
हरूहित मालूशाही राजुला, कथा पे गीत अपार।।
जीवन आगे बढ़ गया, बना सुखी परिवार।
वक्त से पहले आकर एक दिन, करा काल प्रहार।।
काल से डटकर लड़े आप पर, हो गई अंत में हार।
पचपन बरष की आयु में, छोड़ चले संसार।।
लेखन सुंदर मधुर गायकी, छोड़ी जग में छाप।
हर उत्तराखंडी के दिल में, सदा जीवित हैं आप।।
- चंपा पांडे
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