साहित्य चक्र

05 February 2023

कविताः जिंदगी





ज़िंदगी धुएं की तरह उड़े जा रही है,
कभी काली कभी सफेद हुए जा रही है।

हम आस लगाए बैठे है ये मखमल की तरह चली जा रही है,
पर ये तो कभी सीधी कभी आड़ी तिरछी हुए जा रही है।

हम सोच रहे है ये खुशहाली ही खुशहाली ला रही है,
पर ये तो हर इक मोड़ पर नई परीक्षा लिए जा रही है।

हर रोज़ मुलाकात हो जाती है किसी अनजान चेहरे से,
और ये कहीं न कहीं किसी से दुश्मनी भी बढ़ाए जा रही है।

बदल देता है मिल कर कोई शख्स किसी की जिंदगी के मायने,
पर ये उसके मिलने की भी परीक्षा लिए जा रही है।

"जय"अखिर जिंदगी क्या क्या रंग दिखा रही है,
हर कदम पर तुझको ये क्यूं आजमाए जा रही है।


                          - लेफ्टिनेंट जय महलवाल


No comments:

Post a Comment