साहित्य चक्र

02 February 2023

कविताः उड़ान



सुन मेरे मन के परिंदे
आगे ही तू बढ़ता चल।

न सोच तू इन राहों का
बस आगे ही निकलता चल।

न सोच तू राहगीरों का
वो भी खुद पंथ पे मिल जाएंगे।

न सोच तू इन हवाओं का
ये भी एक दिन बह जाएंगी।

न सोच तू इन तूफानों का
ये भी एक दिन थम जाएंगे।

न सोच तू इस अंनत व्योम को
इसको भी एक दिन तुम छू जाओगे।

न डर तू अनजान राहों से
ये भी एक दिन परिचित हो जाएंगे।

सुन मेरे मन के परिंदे
बस तू आगे बढ़ता चल
अपनी उड़ान यूँ ही तू भरता चल।

                                  - राजीव डोगरा



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