डाली डाली फूल खिले है
बगिया महक रही है
फुदक फुदक कर डाल डाल पर
कोयल कूक रही है
पेड़ो पर अब लगी झांकने
नई पत्तियां और नए कोंपल
बसंत आ गई चुस्ती लाई
सुस्ती हो गई ओझल
भंवरा भी अब गुंजन करता
मस्ती में ढूंढे कली कली
बसंत अब पतझड़ से कहे
तू भाग जा अब मैं बागों में चली
मन में जब जागे नई उमंग
समझो अब आ गई बसंत
वसुंधरा भी गायेगी खुशी के गीत
हर तरफ खुशियां छायेंगी अनंत
जब मौसम बदलने लगे
सर्दी का होने लगता है अंत
बागों में जब आ जाती बहार
तब समझो आ गया बसंत
- रवींद्र कुमार शर्मा
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