साहित्य चक्र

11 October 2020

मैं गांधी ना बन पाऊंगा।




सत्य के मार्ग पर... तो चलूंगा। 
 लेकिन भ्रष्ट सोच को, 
अहिंसा से कैसे मिटाऊंगा। 
 मैं गांधी ना बन पाऊंगा। 

 क्या......... मैं गांधी बन। 
 एक गाल पर चांटा खाकर,       
 दूसरा गाल भी, 
 सामने कर जाऊंगा। 

 नहीं..........मैं 
 मजलूमों  पर उठने वाला, 
हाथ तोड़ कर आऊंगा। 


 मैं गांधी ना बन पाऊंगा। 
 जुल्मों के खिलाफ... क्या..?
 धरना देकर मांग पत्र दे जाऊंगा। 

 मैं आजाद हिंद की, 
 क्रांति को कैसे मूक कर जाऊंगा।

 मैं गांधी ना  बन पाऊंगा। 
 कमजोर बेसहारों के लिए, 
आवाज से लेकर हाथ तक उठाऊंगा। 

 मैं अहिंसा की कदर करता हूं। 
 लेकिन जो नहीं समझते, 
उन्हें हिंसा से ही समझाऊंगा। 

 मैं देश के गद्दारों से, 
 अहिंसा के संग कैसे लड़ पाऊंगा। 
 इनको इनकी भाषा में ही, 
 अहिंसा का सबक सिखाऊंगा। 

 स्वरचित रचना 
प्रीति शर्मा असीम 

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