साहित्य चक्र

17 October 2020

अपमान ...


लघुकथा-

सतीराम लोहार अपनी पत्नी के साथ प्रेम पूर्वक सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे।सतीराम की भट्टी पर एक दिन त्रिवेणी चाचा हंसिया में धार लगवाने आए। बातों ही बातों में सतीराम को नसीहतें देने लगे कि क्यों रे सतीराम के 30 साल होने वाले हैं, तेरे और अभी तक कोई बालक नहीं हुआ। कोई वैद्य राज से सलाह लिया या, पूरी जिंदगी ऐसे ही काटेगा। कुछ पूजा पाठ की तरफ भी ध्यान दें। भगवान शिव जी और सूर्य को पीतल के लोटे में रोज जल अर्पण किया कर तेरा भला होगा। यह कहते हुए त्रिवेणी चाचा अपने डगर को चले गए पीछे से सतीराम भी हां में हां मिलाता रहा। सतीराम को बात लग गई उसने वैद्य राज से परामर्श इलाज और पूजा पाठ शुरू कर दिया।

कुछ दिनों पश्चात सतीराम को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, मारे खुशी से झूम उठा। पूरे गांव में मिठाई बंटवाई और त्रिवेणी चाचा को बुलाकर एक धोती व साल सम्मान स्वरूप दिया। सतीराम का पुत्र बड़ा हुआ। वह कान से ऊंचा सुनता था। उसका नाम ही कानू पड़ गया। कानू बहुत मेहनती था, अपने काका के पास पूरे दिन भट्टी फूंका करता था। समय मिलती तो गाय चराता और गाय चराते चराते अपनी किताब लेकर पढ़ता भी रहता। कभी-कभार मौका मिलता तो स्कूल जाता। कानू की जिंदगी एक फिरतू के समान थी। सतीराम काका जो कह दिये कानू वही करता। कानू धार्मिक विचारधारा का था। रामायण में रुचि बहुत थी। लगभग रामायण की पंक्तियां उसे कंठस्थ हो गई थी। उसको रास्ते में जो भी मिलता सबको राम राम का संबोधन करता । उसके बाद रामायण की चौपाई जरूर सुनाता। जिनको रूची होती थी वह सुनते कानू की वाहवाही करते। जिनको रूची नहीं थी , पीछे से कानू की खिल्ली उड़ाते हुए निकल जाते।

कानू को किसी की बात को बुरा नहीं मानता था। वह हमेशा मस्त रहता था, और मुस्कराता रहता था। इस प्रकार पढ़ते हुए कानू दसवीं मे पहुंचा। कानू ने परीक्षा दिया परीक्षा परिणाम स्वरूप फेल हो गया। गांव के सभी लोग हास्यास्पद टिप्पणी करने लगे। अरे कानू के बस का कहां है, पढ़ाई लिखाई वह फिरतू की तरह से गाय के पीछे भागता फिरता है। कभी कभार स्कूल जाता है। उसकी रुचि तो रामायण में है चौपाइयां सुनाता फिरता है। कहां पास होगा। वह उसको तो पढ़ाई का पीछा छोड़ कर लोहा कुटाई की तरफ ध्यान देना चाहिए। कानू की मां देवी समान थी, कुछ भी कोई कहे उन पर असर नहीं होता था। यही हाल पिता सतीराम का भी था, लेकिन लोगों ने सतीराम का कान खुजा-खुजा कर कानू के प्रति नकारात्मक माहौल खड़ा कर दिया था।

कानू कोई भी काम करता तो सतीराम को कोई ना कोई कमी दिखती ही रहती थी। कानू को पूरे दिन कोसते ही रहते थे। कानू सब से यही कहता था, मैं एक दिन अव्वल दर्जे से पास होउंगा। जब सब लोग मेरी अंकतालिका देखेंगे, तब मेरे ऊपर सारे लगे आरोप निराधार होंगे। कानू यही कह कर हंसता रहता था। इसी प्रकार कानू दूसरे साल परीक्षा दिया फिर फेल हो गया। कानू के साथ अजीब संयोग था, शिक्षक व गुरु कानू से बहुत खुश थे। अक्सर कहते थे कानू तो पढ़ने में बहुत होनहार है, पता नहीं क्यों फेल हो जाता है।

अब तो सतीराम को भी लोगों की बात चुभने लगी थी। बातों ही बातों में कहते थे, अरे त्रिवेणी चाचा ने कौन सा आशीर्वाद दिया ऐसा निकम्मा पुत्र पैदा हुआ। लेकिन कानू की अम्मा हमेशा कानू का ही साथ देतीं थी। कहती थी कि मेरा कानू एक दिन जरूर अव्वल दर्जे से पास होगा। ऐसे ही चलता रहा कानू ने तीसरी साल का परीक्षा दिया। परीक्षा परिणाम आया तो कानू इस बार अव्वल दर्जे से पास हुआ। गांव में चारों तरफ खबर फैल गई कानू जिले में अव्वल पास हुआ है। यह बात सबको नगवारा प्रतीत हुई। कौन माने जब तक अंकतालिका नहीं देख लेंगे तब तक विश्वास न करेंगे।

इस बार कानू की मां ने कहीं कि मेरा लड़का पास हो या फेल वह बहुत काम करता है। मुझे कोई शिकायत नहीं है और मुझे उम्मीद है। अंक तालिका आएगा तो मेरा कानू अव्वल दर्जे से पास होगा। कुछ समय पश्चात अंक तालिका आई और कानू वाकई में अव्वल दर्जे से पास था। कानू अंकतालिका लेकर सबको खुशी के मारे दिखाता फिरता था। जिसका नाम लोगो ने फिरतू रखा था। आज वह अपनी अंक तालिका दिखाता फिर रहा है। कानू की मां अनपढ़ थी वह क्या जाने अंक तालिका में नंबर कैसे आते हैं। कानू को बोली बेटा एक बार मेरे को भी दिखा दे, मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। कानू अंक तालिका लेकर अपनी मां के हाथों में पकड़ा दिया। कानू की मां गंगा जमुनी की तरह से आंखों से आंसू बरसाने लगी। यह देख कर कानू भी हृदय विदारक हो गया और मां को समझाने लगा कि मां तू रो मत मैं पास हो गया हूं।

कानू की मां अंक तालिका हाथ में पकड़े-पकड़े यही कहती रही कि तेरे ऊपर लगे सारे अपमान धुल गए रे कानू, आज मैं धन्य हो गई। तूने मुझे धन्य कर दिया। न जाने कब हाथों से अंक तालिका छूटी। कानू की मां काठ समान हो गई थी। प्राण छूट चूके थे। कानू पलट कर देखता है, तो उसकी मां बैठे-बैठे या शिथिल हो गई थी। खुशी से फूला न समा रहा था। अम्मा अम्मा बोले जा रहा था। अम्मा कुछ बोल नहीं रही हो। अम्मा तो तब बोले जब जान हो। कानू की आवाज सुनकर सतीराम भागा-भागा आया। दहाड़ मार कर रोने लगा। कानू को समझ में आ गया कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही। वह भी रोते हुए कहता था कि अम्मा मुझे अंकतालिका नहीं चाहिए तू वापस आ जा मैं फेल सही, फेल ही रहूंगा। अम्मा मैं पास नहीं होऊंगा लेकिन अम्मा कहां सुनती। मां तो अनंत सफर के लिए निकल चुकी थी। बेटे की अनंत खुशियों में अनंत हो चुकी थी।


यशवंत राय श्रेष्ठ


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