दाग ये केवल चेहरे पर नहीं है, नासूर है ये मेरी आत्मा का
अब ये मेरी कमज़ोरी नहीं है, हस्ताक्षर है मेरी पहचान का
बर्दाश्त नहीं कर सकता एक 'ना', वाह रे तेरा उसूल ज़माना
फेंक कर तेजाब चहरे पर मेरे, दिया प्रमाण तुमने वीरता का
मानवता की ये नई मिसाल, खूब तुमने की जग जाहिर
जो दिया ये ताउम्र का दर्द, नहीं अंदाज़ा मेरी कसक का
अपने बाबा का मैं गुरुर, चलना अभी किया ही था शुरू
सजाए थे मैंने भी कुछ सपने, हक ना था तुम्हें यूँ तोड़ने का
झुठला दी इंसानियत तुमने, बनाया जो तमाशा रिश्तों का
दाग़ ये केवल चेहरे पर नहीं है, नासूर है मेरी आत्मा का
सहृदय आभार
विनीता पुंढीर
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