साहित्य चक्र

17 October 2020

औरत भी आजाद है।






यह लेख लिखने का मकसद मेरा सिर्फ इतना है, जो लोग औरत को अपने धर्म, अपनी जाति और अपने परिवार की संपत्ति समझते हैं। मैं उनसे कहना चाहता हूं औरत भी आजाद है। औरत भले ही मेरी मां हो, मेरी पत्नी हो और मेरी बहन हो। उसे भी अपने अनुसार फैसला लेने, करने और चलने का अधिकार है। हाल ही में तनिष्क ज्वेलर्स ने एक विज्ञापन बनाया था क्योंकि इस वक्त त्योहारों का सीजन है। मगर उस विज्ञापन को देखकर हिंदू मुस्लिम की बात होने लगी। किसी ने कहा लड़की हिंदू ही क्यों दिखाई गई..? मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं आप तब कहां मर जाते हैं जब बड़े-बड़े पैसों वाले लोग हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्मों से शादी करते हैं। 

चलो तुम उनकी बात छोड़ो तुम इतना बताओ जिस हिंदू धर्म की तुम वकालत कर रहे हो, उस धर्म में ब्राह्मण और राजपूत में आपस में शादी नहीं होती है। क्या कभी तुमने इस विषय पर बोला...? और तो और छोड़ो कई स्थानों पर ब्राह्मण और ब्राह्मण यानि अलग-अलग ब्राह्मणों में भी शादी नहीं होती है। इस बात को शायद तुमने कभी सोचा ही नहीं होगा, क्योंकि इतना सोचने के लिए थोड़ा सा पढ़ना पड़ता है और समाज को समझना पड़ता है। अगर मेरे इस लेख में कुछ भी गलत हो तो आप मुझे तर्कों से काटना मैं उन तर्कों को स्वीकार करूंगा।

 मुस्लिम समाज वालों तुम भी दूध के धुले नहीं हो। तुम्हारे समाज की भी हकीकत हमें मालूम है। यह मत भूलना कि तुम्हारे समाज में भी छुआछूत जातिवाद नहीं है। इस्लाम के नाम पर तुम्हारे धर्म के ठेकेदारों ने स्त्री की जो दशा अपने मन से गणित की है वह भी सोचनीय है। मैं तुमसे पूछना चाहता हूं क्या तुमने कभी इन धर्म के ठेकेदारों का विरोध किया..? नहीं..! क्योंकि तुम्हें लगता है अगर हम इनका विरोध करेंगे तो पूरे विश्व में इसका क्या संदेश जाएगा। भारत में आज भी मुस्लिम समाज सबसे पिछड़ा हुआ है, क्या तुम लोगों ने इस पर विचार विमर्श किया..? कभी नहीं क्योंकि तुम्हें लगता है पिछड़ापन हमारे समाज की पहचान है। क्या संस्कृति के नाम पर बुर्का पहनना जरूरी है वह भी 21वीं सदी में जहां दुनिया वीडियो कॉलिंग से एक दूसरे से बात कर रही है..? 

इन सब चीजों का जवाब आप लोगों के पास नहीं होगा और हां अन्य धर्मों में भी कई सारी कमियां हैं। उन सभी कमियों को दूर करने के लिए हम सभी को आगे आना होगा। मुझे ऐसा लगता है इन कमियों को दूर स्त्री समाज को आगे लाकर ही किया जा सकता है। जब तक समाज में स्त्री को बराबरी का दर्जा नहीं मिलेगा तब तक समाज में पाखंड और स्त्रियों का शोषण होता रहेगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की औरत भी आजाद है। औरत को भी स्वतंत्र रूप से सोचने, कपड़े पहनने, अकेला चलने, शादी करने, बच्चा पैदा करने, गैर रिश्ता रखने इत्यादि अधिकार प्राप्त है। 

यहां पर कुछ लोग अपने धर्म ग्रंथ और शास्त्रों सहित कई चीजों का हवाला देंगे कि स्त्री हमारे समाज और हमारे घर की इज्जत मान प्रतिष्ठा है। मेरा उन सभी लोगों से सवाल है क्या सिर्फ स्त्री को ही यह सम्मान देना सही है...? मुझे लगता है एकदम गलत है। तुम लोग अपने घर और समाज के मान, प्रतिष्ठान के नाम पर स्त्री पर जितना अत्याचार करते हो। अगर इतना अत्याचार स्त्री आप लोगों पर करें और बोले कि आप लोग समाज और घर की मान, प्रतिष्ठान हैं तो क्या तुम सह सकते हो...? कदापि नहींं...! क्योंकि तुम्हारी मानसिकता पुरुष सत्ता और पितृसत्ता से ग्रस्त है। कई महापुरुष कहते हैं अगर आपको किसी देश की तरक्की और विकास को देखना है तो वहां के औरतों की दशा देखिए आपको पता चल जाएगा उस देश ने कितना विकास और तरक्की की है। 



                                                                                                         #दीप_मदिरा




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