साहित्य चक्र

11 October 2020

स्वप्न




आज उन्मुक्त उड़ने का स्वप्न देखती है बेटियां।
पाबन्दियों में भी घर परिवार ,देखती है बेटियां।।

वे भी देश के विकास में आगे आना चाहती है।
घर का नाम रोशन करना चाहती है बेटियां।।

देखती है ऊँचे स्वप्न ,मंजिल तक पहुंच जाती है।
कमतर नहीं , अब बेटों से आगे बढ़ती है बेटियाँ।।

जमीं से फलक तक काम कर रही है बेटियां।
राष्ट्र के निर्माण में नित आगे बढ़ रही है बेटियां।।

दृढ़ संकल्प ले चली है आज देश की बेटियां।
खगोल ,भूगोल , अंतरिक्ष नापती है बेटियाँ।।

स्वप्न को साकार करती हिंदुस्तान की बेटियां।
सियासत का भी नेतृत्व करती है बेटियाँ।।

ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतती है ये बेटियां।
देश का हर समय सम्मान बढ़ाती है ये बेटियां।।

डॉ. राजेश पुरोहित

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