जो सूरज की तपिश और परछाई
से अनुमान लगा लेता है वक्त का।
जो आबपाशी में बहते पानी को,
समझता है कोई सुंदर जलप्रपात।
जो खेतों में लहराते गेहूँ और अलसी की
परवरिश करता है अपनी संतान की भांति।
उसे प्रकृति के रमणीय दृश्य देखने हेतु
आवश्यकता नही होती, किसी पर्यटक स्थान की।
जो अपनी अन्नपूर्णा भूमि में
अनुभव करता है
स्वर्ग के सुंदर उपवन का।
उसी किसान ने हर युग मे
समृद्ध किया भारत वर्ष को
धन्यधान से।
बनाया हमारी सँस्कृति को
प्रत्येक क्षेत्र में विश्वगुरु ।
और पहना दिया ताज
उसके मस्तक पर
स्वर्ण युग होने का।
हमारा प्राचीन इतिहास गवाह है,
जब भी किसी मनुष्य से
इस अन्नदाता का शोषण
अपने स्वार्थ हेतु किया है।
तब- तब त्रासदी के झंझावात ने
उसकी नीव को उखाड़ फेका है।
और तब -तब मानव संस्कृति के साथ
मानवता भी शोषण के पेड़ पर
अपने हक की याचना करते हुए
दम तोड़ गई।
और यही शोषण उस क्षेत्र के
पतन का मुख्य कारण बना है।
ममता मालवीय 'अनामिका'
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