छोड़कर चिंता-ओ-फ़िक्र का दामन,
कैसे होगा लालन पालन,
चौड़ी लंबी खिंच लकीर,
किसी को ना आने दूं अपने आंगन,
नाम काम की बात नहीं,
ऐशो आराम का साथ नहीं,
हर आदमी, हर स्त्री से दूर,
सुख सुविधा का ढ़ांचा चूर,
इस दुनिया की सीमा पर,
जा, कर, मन की भरपूर।
गायब होने को बेताब,
कर रही हूं गमछे का नाप,
छोटा-मरा कपड़ा है ये,
दूं अपनी कद काठी को श्राप,
चोगा खुशहाली का है,
उतरे दिखे तन भर के दाग,
गमछा छोटा, जाले सा है,
मन पढ़ ले आसानी के साथ।
दुनिया की सीमा दागीली है,
लो छोड़ दिया दामन का हाथ,
आध अधूरी दिखती हूं,
जल जाना सम गिली काठ,
बंट जाने को बैठी हूं,
हूं जैसे दुनिया अभिशाप,
अब दहलीज़ लांघ दी है,
गायब होने को बेताब।।
श्रद्धा जैन
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