23 October 2020
।। प्रेम ।।
22 October 2020
सेना का खर्चा क्यों घटाया..?
17 October 2020
अपमान ...
वक्त के साथ
तेरी जुदाई
मैं_आज_भी_आरक्षण_के_खिलाफ_हूं
आज हर कोई युवा यही कहेगा कि आरक्षण हमारे देश में कैंसर की तरह है। जो हमारे देश को अंदर ही अंदर खोखला करता जा रहा है। मुझे ऐसा लगता है कि आरक्षण गलत है मगर कैंसर नहीं है। यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अभी हाल ही में राम मंदिर भूमि पूजन व शिलान्यास कार्यक्रम हुआ। जिसमें देश के प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल संवैधानिक पद के रूप में इस कार्यक्रम में मौजूद थे। मेरे समझ में एक बात नहीं आई आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत इस कार्यक्रम में कैसे प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल के साथ इस कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं। मोहन भागवत किसी संवैधानिक पद पर नहीं है, उसके बावजूद भी वह शामिल हुए। क्या मोहन भागवत की जगह देश के सर्वोच्च व्यक्ति यानी राष्ट्रपति महोदय शामिल नहीं हो सकते थे ? मेरा दूसरा सवाल है क्या राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक अछूत दलित होने के कारण इस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया ?
अगर हिंदू धर्म में छुआछूत नहीं है या खत्म हो गई है तो फिर इस कार्यक्रम में किसी अछूत व दलित को क्यों नहीं बुलाया गया ? अब आप सोच रहे होंगे कि मेरे यहां सवाल आरक्षण से बिल्कुल हटकर है। हां मैं इन सवालों के माध्यम से आप को जताना चाहता हूं कि आरक्षण की जरूरत क्यों पड़ी ? आरक्षण की जरूरत हमारे देश में इसलिए पड़ी क्योंकि यहां पर जातिवाद के चलते लोगों पर अत्याचार हुआ करता था। जातिवाद का अत्याचार आज भी हमारे देश में होता है जो आप टीवी न्यूज़ चैनलों और अखबारों के जरिए हर रोज सुनते और पढ़ते होंगे। हां यह अत्याचार आज ही नहीं बल्कि हजारों सालों से चलता आ रहा है।
आज भी आप उठाकर देख लीजिए जितने भी सफाई कर्मचारी हैं वह सभी आपको नीच जाति यानी अछूत लोग ही मिलेंगे जबकि हिंदुओं के सभी मंदिरों में पुजारी सिर्फ ब्राह्मण ही मिलेंगे ऐसा क्यों ? अगर समानता की बात करनी है तो हर जगह क्यों नहीं करें ? जो लोग सीवर लाइन साफ करते हैं उनकी कई सारी पीढ़ियां वही काम करती आ रही है क्या किसी ने उन्हें मुक्ति दिलाने का काम किया ? आपको मालूम है आज भी देश में ऐसे लोग हैं जिनकी पहली पीढ़ी ने किताब देखी है, मगर मैं फिर भी आरक्षण के खिलाफ हूं। अगर समाज को जातिवाद जिंदा रखना ही है, या हिंदू समाज जातिवाद को अपनी संस्कृति समझता है। मैं फिर उन सभी लोगों से कहना चाहूंगा आप अपने प्रवचन और समानता का ढोंग अपने तक ही सीमित रखना। याद रखिए जैसे-जैसे निचली जाति के लोग यानी अछूत लोग शिक्षा ग्रहण करेंगे, वैसे वैसे आप की हकीकत दुनिया के सामने खुलती रहेगी। भले ही आप अपने धर्म ग्रंथ शास्त्रों में कितना ही संशोधन क्यों ना कर लें पर आने वाला भविष्य भी उन्हीं के साथ खड़ा होगा यह मुझे संपूर्ण विश्वास है। इतना ही नहीं आपकी आने वाली पीढ़ी भी आपकी कुर्ता और पाखंड को लात मारेगी। अब वह जमाना गया जब लोग बाबा हकीम के पास जाया करते थे और पेट दर्द के लिए बाबा ऐसे झूठ मुठ का मंत्र पढ़ देता था। आज की दुनिया सिर्फ हकीकत और लॉजिक पर विश्वास करती है। आज की दुनिया चांद और मंगल पर है।
आजादी से पहले आरक्षण नहीं था मुझे बताओ फिर देश गुलाम क्यों बना आरक्षण पर रंडी रोना रोने वालों ? निचली जाति ने तो अपना काम करना बंद किया ही नहीं है जबकि तुमने ही अपना काम बंद कर दिया है। जिसे तुम आज इंजीनियर कहते हो, वह पहले मिस्त्री और मजदूर हुआ करते थे। जिनकी जाति सिर्फ शूद्र हुआ करती थी। अगर मेरी बातों पर विश्वास नहीं है तो उठा कर देख लीजिए इतिहास और खोजिए क्या आप के जितने भी बड़े बड़े मंदिर और धार्मिक धरोहर हैं- उनका निर्माण किन लोगों ने किया है ? और तो और आपके भगवानों को आकार भी एक मूर्तिकार ही देता है जो अधिकतर निकले जाति के ही होते हैं। आरक्षण व्यवस्था तो आपकी ग्रंथों से शुरू हुई है- आखिर एक व्यक्ति सर्वोच्च और दूसरा व्यक्ति अशुद्ध कैसी हो सकता है ? खुद का दिमाग लगाइए और सोचिए क्या यह संभव है। आपके ग्रंथों में तो वर्ण व्यवस्था का जिक्र है। उस व्यवस्था के अनुसार अगर ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और उनकी महिलाओं का शोषण भी करें तो भी उसे कोई सजा नहीं मिलती थी।
भला यह आरक्षण नहीं था क्या ? तुम्हारे ही ग्रंथों के अनुसार कई जगह भगवानों ने असुरों को हराने के लिए छल-कपट का सहारा लिया क्या वह आरक्षण नहीं था क्या ? तुम्हारे ही ग्रंथों में लिखा है कोई अछूत यानी शूद्र ग्रंथों का अध्ययन नहीं करेगा अगर वह अध्ययन करता है तो उसकी आंखों और कानों में शीशा पिघलाकर डाल दिया जाएगा। क्या यह आरक्षण नहीं है ? आज तक तुम्हारे मंदिरों में एक भी शूद्र व अछूत पुजारी नहीं बन सका क्या यह आरक्षण नहीं है ? तुम्हारे कई ग्रंथों में छुआछूत और वर्ण व्यवस्था का वर्णन है। तो फिर तुम कैसे कहते हो कि हमारे सनातन यानि हिंदू धर्म में ऐसा है ही नहीं। अगर नहीं है तो फिर आगे आओ शादी ब्याह एक-दूसरे से करो और योग्यता के अनुसार पुजारी पंडित बनाओ। अगर तुम्हारे समाज में छुआछूत जातिवाद वर्ण व्यवस्था नहीं थी, तो फिर तुम्हारे सभी ग्रंथ झूठे हैं।
हां एक और बात अंत में कहते जा रहा हूं- स्त्री को तो वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे रखा गया था यानी शूद्र उसे भी नीचे। अब आप अलग-अलग माताओं के नाम लेकर इसे नकारने और झूठलाने का प्रयास करोगे। अगर तुम्हारे धर्म में स्त्री को इतना ही सम्मान मिला होता तो तुम्हारे धर्म के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी अपने बेटी सरस्वती से शादी नहीं करते जबकि उनकी चार पत्नियां थी। इसके अलावा भी आपके कई भगवानों के 4, 5, 2 पत्नियां का वर्णन भी है। हां मैं आरक्षण का विरोधी हूं पूर्ण रूप से शायद ही आप मेरे से ज्यादा होंगे। आरक्षण को भीख कहने वालों से मैं पूछना चाहता हूं बिना योग्यता बिना टेस्ट पास किए हुए सिर्फ ब्राह्मण के नाम पर मंदिर पर बैठे पुजारियों पर आपका क्या विचार है ?
हां मैं आरक्षण का कट्टर विरोधी हूं, मगर उससे कहीं ज्यादा में तुम्हारे मनगढ़ंत कहानियों और वर्ण व्यवस्था का विरोधी हूं। याद रखिए यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस देश को शिक्षित, आत्मनिर्भर, विकसित होने की जरूरत है। मेरा सपना है यह देश पाखंडवाद, जातिवाद, धर्मवाद से मुक्त हो। मैं नहीं जय श्री राम, जय भीम, जय भीम, अल्लाह हू अकबर और ना ही कम्युनिस्ट विचारधारा का हूं। मैं सिर्फ सिर्फ सिर्फ इंसानियत का समर्थन हूं। बाकी आप मुझे जितनी गालियां दे दो मैं आपके उन गालियों को तुम्हारे मनगढ़ंत कहानियों के शिव की तरह अपने गले में विष के रूप में पी लूंगा।
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आदेश
शमशान की राख को
सीने से लिपटाए फिरता हूँ,
महाकाल का भगत हूँ
उनका नाम लिए फिरते हूँ,
मैं चुपचाप
सभी की सुनता हूं
किसी को कुछ बोलता नहीं।
आदेश है माँ महाकाली का
बेमतलब इसलिए
किसी को सताता नहीं।
गुर्राता है कोई तो
मैं चुप रहता हूँ
फिर भी बेमतलब किसी को
मौत की नींद सुलाता नहीं।
खामोशियां है बहुत दफन
मेरे इस सीने में
मगर अपनी मां काली के अलावा
किसी को सुनाता नहीं।
राजीव डोगरा 'विमल'