साहित्य चक्र

23 October 2020

।। प्रेम ।।



प्रेम- प्रेम करता रहता मानव, 
असल में प्रेम कहाँ समझ पाया है। 
मात्र तन को छूना ही प्रेम नहीं,
क्या मन को भी  छू पाया है? 
प्रेम पंछी उन्मुक्त गगन का, 
बांध  सके न  कोई डोर, 
पिया की खुशी जहाँ दिखे, 
विचरे प्रेम है उसी ओर। 
बस पाना खोना प्रेम कहाँ, 
प्रेम तो भाव है अंतर्मन का। 
गहरा सार  लिए है प्रेम, 
ये रिश्ता नहीं है मात्र तन का। 
प्रेम न देखे जाति- धर्म, 
और  देखे न कभी उम्र।
कब प्रवाहमय में हो जाए, 
रहती न किसी को खबर। 
जरूरी नहीं कि जीवन में, 
विवाह बंधन से मिल जाए प्रेम। 
त्याग समर्पण जहाँ  मिले,
वहीं पुष्प सा खिल जाए प्रेम। 
ढाई आखर प्रेम के, 
मानव जीवन आधार। 
प्रेम चाहे बस प्रेम सबसे, 
होए न कोई विकार। 
प्रेम की परिभाषा साधारण, 
बस निश्छल हो प्रेम।
सम्मान करें एक दूजे का, 
कहीं पनप न पाए अहम।

                                           कला भारद्वाज


22 October 2020

सेना का खर्चा क्यों घटाया..?


मेरा यह सवाल सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साहब से है। मान्यवर आप देश के प्रधान सेवक है इसलिए मेरा सवाल सीधे आपसे है। श्रीमान मैं जानना चाहता हूं- एक तरफ आप बोलते हैं भारत को विश्वगुरु बनाना है, तो वही दूसरी तरफ आप भारतीय सेना का खर्चा कम कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों..? आज जितने भी विकसित और ताकतवर देश है उनकी सेना और सुरक्षा विभाग बहुत मजबूत और आधुनिक टेक्नोलॉजी से परिपूर्ण है। जबकि उन देशों की सीमाएं हमारे देश के मुकाबले काफी शांति और सुरक्षा पूर्ण है। हमारे देश की सीमा बहुत बड़ी और शांतिपूर्ण और खतरनाक है। यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मेरे दादाजी एक सैनिक थे जो हमें अक्सर बताया करते थे कि भारतीय सेना कितनी मजबूत है और कैसे मजबूत हो सकती है ? भारतीय सेना में मेरे दादाजी ने करीब 30 से 35 साल की सेवा दी है। जब वह 1965 और 71 की लड़ाई के बारे में हमें बताते थे तो तब समझ में आता था कि हमारे देश की स्थिति 1965 और 71 में कैसी थी..? इतना ही नहीं हमारे गांव के अन्य लोग भी भारतीय सेना में अपनी सेवा दे चुके हैं और कुछ लोग दे रहे हैं। मैंने करीब से देखा है जब मैं कक्षा तीन में था तो मेरे साथ मेरी एक बुआ भी पढ़ती थी। हां वो रिश्ते में मेरी बुआ थी मगर मेरे ही उम्र की थी। उसके पिताजी भी भारतीय सेना में थे। शायद 2003- 4 की बात है, जब उसके पिताजी किसी हमले में शहीद हो गए। तब मैं महसूस किया है एक सैनिक जब शहीद होता है तो उसके परिवार पर कितना बड़ा दुखों का पहाड़ टूट ता है। कई सारी घोषणाएं होती है उसके नाम पर मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। प्रधानमंत्री जी मैं आपसे पूछना चाहता हूं- एक विधायक या एक सांसद जब एक बार चुनाव लड़ता है वह भी सिर्फ 5 साल के लिए ही विधायक और सांसद बनता है। उसके बाद हमारी सरकार उसे आजीवन पेंशन देती है और भी कई अन्य सुविधाएं भी देती है। क्या मैं जान सकता हूं यह सेवाएं और सुविधाएं क्यों मिलती है...? जबकि इन लोगों की कोई योग्यता और आयु सीमा नहीं होती है। मेरे इस प्रश्न पर मुझे कई सारे लोग मूर्ख और बुद्धिहीन समझेंगे। मगर मुझे मालूम है कि यह हमारा संविधान कहता है कि हर व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। 70 साल पहले संविधान का निर्माण हुआ क्या आज हम अपने वर्तमान की जरूरतों को देखते हुए संविधान में संशोधन नहीं कर सकते..? चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति की योग्यता और उम्र सीमा तय नहीं कर सकते..? कर सकते हैं यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आप ने नोटबंदी जैसा कदम उठाया था देश की जनता ने आप का साथ दिया था।

जब भी हो पढ़ा भारतीय सेना का खर्चा सरकार कम करने जा रही है, तो मुझे बहुत ही दुख हुआ। हां आपके कार्यकाल का यह छठा साल है। आपने अपने कार्यकाल के दौरान अभी तक कई बड़े फैसले लिए हैं। जिसका परिणाम देश ने भुगता भी है और देश को फायदा भी हुआ है। भले ही फायदा की मात्रा बहुत कम हो। आपके अंदर निर्णय लेने की क्षमता और जज्बा है। जिसे देखकर मैं हमेशा प्रसन्न रहता हूं। व्यक्तिगत तौर पर मैं आपसे सिर्फ एक कार्यक्रम में मिल पाया हूं। इससे ज्यादा मैं व्यक्तिगत तौर पर आपको ज्यादा नहीं जानता हूं और ना ही मैं जानना चाहता हूं। हां मुझे इतना जरूर पता है आप जो सोचते हैं और जो करना चाहते हैं वह जमीनी स्तर पर सही से नहीं हो पा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारा जो सरकारी तंत्र है वह बहुत ही लचीला और भ्रष्ट हो चुका है। सीमा पर तैनात एक सिपाही की सैलरी एक स्कूल में पढ़ा रहे अध्यापक से कम होती है जबकि सिपाही अध्यापक से ज्यादा घंटे ड्यूटी करता है और सिपाही की जान हमेशा खतरे में रहती है। इसके अलावा आप भली-भांति जानते हैं हमारे देश के नेताओं कितनी सुविधाएं मिलती है। चुनाव के दौरान लाखों करोड़ों रुपए खर्च करते हैं। माननीय प्रधानमंत्री जी 2019 आम चुनाव में आपकी पार्टी बीजेपी ने सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया था। अगर इतना पैसा आम जनता के विकास और संसाधनों में लगा दिया जाए तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं भारत में एक भी व्यक्ति गरीब नहीं रह सकता। मैं आप से उम्मीद करता हूं सीमा पर तैनात, हमेशा अपनी जान खतरे में रखने वाले हमारे वीर सैनिकों के बारे में जरूर सोचें। हमें अपने सीमाओं की रक्षा के लिए रक्षा बजट को और बढ़ाना चाहिए। क्योंकि हमारे पड़ोसी बहुत ही खतरनाक और ताकतवर है। इसके अलावा हमारे कुछ छोटे-छोटे पड़ोसी भी हमसे नाराज होने लग गई है। जिसका आने वाले समय में हमारी सुरक्षा व्यवस्था में फर्क पड़ेगा।

हर रोज सीमा पर हमारे कई सैनिक शहीद होते हैं। आज तक हमारी सरकार इन चीजों पर गंभीरता से नहीं सोच पायी। सरकारें आती रही जाती रही मगर सीमा पर हमारे जवान शहीद होते रहे। क्या उन जवानों की जान की कीमत कुछ नहीं है..? सीमा पर शहीद होने वाले हर सैनिक के परिवार को विधायक, सांसद के बराबर सरकारी सुविधाएं मिलनी चाहिए। नहीं तो देश में चुनाव वही लड़ सकता है, जिसने सेना में अपनी सेवा दी हो या फिर जिसका बेटा या परिवार से कोई सेना में हो..! अभी सैनिकों की शहादत के बारे में हम गंभीरता से सोच पाएंगे। एक सैनिक परिवार से होने के नाते मुझे सेना के खर्चे को कम करने की खबर ने बहुत ही आहत किया है।

@दीपक_कोहली


17 October 2020

अपमान ...


लघुकथा-

सतीराम लोहार अपनी पत्नी के साथ प्रेम पूर्वक सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे।सतीराम की भट्टी पर एक दिन त्रिवेणी चाचा हंसिया में धार लगवाने आए। बातों ही बातों में सतीराम को नसीहतें देने लगे कि क्यों रे सतीराम के 30 साल होने वाले हैं, तेरे और अभी तक कोई बालक नहीं हुआ। कोई वैद्य राज से सलाह लिया या, पूरी जिंदगी ऐसे ही काटेगा। कुछ पूजा पाठ की तरफ भी ध्यान दें। भगवान शिव जी और सूर्य को पीतल के लोटे में रोज जल अर्पण किया कर तेरा भला होगा। यह कहते हुए त्रिवेणी चाचा अपने डगर को चले गए पीछे से सतीराम भी हां में हां मिलाता रहा। सतीराम को बात लग गई उसने वैद्य राज से परामर्श इलाज और पूजा पाठ शुरू कर दिया।

कुछ दिनों पश्चात सतीराम को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, मारे खुशी से झूम उठा। पूरे गांव में मिठाई बंटवाई और त्रिवेणी चाचा को बुलाकर एक धोती व साल सम्मान स्वरूप दिया। सतीराम का पुत्र बड़ा हुआ। वह कान से ऊंचा सुनता था। उसका नाम ही कानू पड़ गया। कानू बहुत मेहनती था, अपने काका के पास पूरे दिन भट्टी फूंका करता था। समय मिलती तो गाय चराता और गाय चराते चराते अपनी किताब लेकर पढ़ता भी रहता। कभी-कभार मौका मिलता तो स्कूल जाता। कानू की जिंदगी एक फिरतू के समान थी। सतीराम काका जो कह दिये कानू वही करता। कानू धार्मिक विचारधारा का था। रामायण में रुचि बहुत थी। लगभग रामायण की पंक्तियां उसे कंठस्थ हो गई थी। उसको रास्ते में जो भी मिलता सबको राम राम का संबोधन करता । उसके बाद रामायण की चौपाई जरूर सुनाता। जिनको रूची होती थी वह सुनते कानू की वाहवाही करते। जिनको रूची नहीं थी , पीछे से कानू की खिल्ली उड़ाते हुए निकल जाते।

कानू को किसी की बात को बुरा नहीं मानता था। वह हमेशा मस्त रहता था, और मुस्कराता रहता था। इस प्रकार पढ़ते हुए कानू दसवीं मे पहुंचा। कानू ने परीक्षा दिया परीक्षा परिणाम स्वरूप फेल हो गया। गांव के सभी लोग हास्यास्पद टिप्पणी करने लगे। अरे कानू के बस का कहां है, पढ़ाई लिखाई वह फिरतू की तरह से गाय के पीछे भागता फिरता है। कभी कभार स्कूल जाता है। उसकी रुचि तो रामायण में है चौपाइयां सुनाता फिरता है। कहां पास होगा। वह उसको तो पढ़ाई का पीछा छोड़ कर लोहा कुटाई की तरफ ध्यान देना चाहिए। कानू की मां देवी समान थी, कुछ भी कोई कहे उन पर असर नहीं होता था। यही हाल पिता सतीराम का भी था, लेकिन लोगों ने सतीराम का कान खुजा-खुजा कर कानू के प्रति नकारात्मक माहौल खड़ा कर दिया था।

कानू कोई भी काम करता तो सतीराम को कोई ना कोई कमी दिखती ही रहती थी। कानू को पूरे दिन कोसते ही रहते थे। कानू सब से यही कहता था, मैं एक दिन अव्वल दर्जे से पास होउंगा। जब सब लोग मेरी अंकतालिका देखेंगे, तब मेरे ऊपर सारे लगे आरोप निराधार होंगे। कानू यही कह कर हंसता रहता था। इसी प्रकार कानू दूसरे साल परीक्षा दिया फिर फेल हो गया। कानू के साथ अजीब संयोग था, शिक्षक व गुरु कानू से बहुत खुश थे। अक्सर कहते थे कानू तो पढ़ने में बहुत होनहार है, पता नहीं क्यों फेल हो जाता है।

अब तो सतीराम को भी लोगों की बात चुभने लगी थी। बातों ही बातों में कहते थे, अरे त्रिवेणी चाचा ने कौन सा आशीर्वाद दिया ऐसा निकम्मा पुत्र पैदा हुआ। लेकिन कानू की अम्मा हमेशा कानू का ही साथ देतीं थी। कहती थी कि मेरा कानू एक दिन जरूर अव्वल दर्जे से पास होगा। ऐसे ही चलता रहा कानू ने तीसरी साल का परीक्षा दिया। परीक्षा परिणाम आया तो कानू इस बार अव्वल दर्जे से पास हुआ। गांव में चारों तरफ खबर फैल गई कानू जिले में अव्वल पास हुआ है। यह बात सबको नगवारा प्रतीत हुई। कौन माने जब तक अंकतालिका नहीं देख लेंगे तब तक विश्वास न करेंगे।

इस बार कानू की मां ने कहीं कि मेरा लड़का पास हो या फेल वह बहुत काम करता है। मुझे कोई शिकायत नहीं है और मुझे उम्मीद है। अंक तालिका आएगा तो मेरा कानू अव्वल दर्जे से पास होगा। कुछ समय पश्चात अंक तालिका आई और कानू वाकई में अव्वल दर्जे से पास था। कानू अंकतालिका लेकर सबको खुशी के मारे दिखाता फिरता था। जिसका नाम लोगो ने फिरतू रखा था। आज वह अपनी अंक तालिका दिखाता फिर रहा है। कानू की मां अनपढ़ थी वह क्या जाने अंक तालिका में नंबर कैसे आते हैं। कानू को बोली बेटा एक बार मेरे को भी दिखा दे, मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। कानू अंक तालिका लेकर अपनी मां के हाथों में पकड़ा दिया। कानू की मां गंगा जमुनी की तरह से आंखों से आंसू बरसाने लगी। यह देख कर कानू भी हृदय विदारक हो गया और मां को समझाने लगा कि मां तू रो मत मैं पास हो गया हूं।

कानू की मां अंक तालिका हाथ में पकड़े-पकड़े यही कहती रही कि तेरे ऊपर लगे सारे अपमान धुल गए रे कानू, आज मैं धन्य हो गई। तूने मुझे धन्य कर दिया। न जाने कब हाथों से अंक तालिका छूटी। कानू की मां काठ समान हो गई थी। प्राण छूट चूके थे। कानू पलट कर देखता है, तो उसकी मां बैठे-बैठे या शिथिल हो गई थी। खुशी से फूला न समा रहा था। अम्मा अम्मा बोले जा रहा था। अम्मा कुछ बोल नहीं रही हो। अम्मा तो तब बोले जब जान हो। कानू की आवाज सुनकर सतीराम भागा-भागा आया। दहाड़ मार कर रोने लगा। कानू को समझ में आ गया कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही। वह भी रोते हुए कहता था कि अम्मा मुझे अंकतालिका नहीं चाहिए तू वापस आ जा मैं फेल सही, फेल ही रहूंगा। अम्मा मैं पास नहीं होऊंगा लेकिन अम्मा कहां सुनती। मां तो अनंत सफर के लिए निकल चुकी थी। बेटे की अनंत खुशियों में अनंत हो चुकी थी।


यशवंत राय श्रेष्ठ


वक्त के साथ



वो  गलिया, 
वो  दरवाज़े बदल जाते है |

बचपन  के  चाव,
जवानी  आते-आते ठहर जाते है |

कहाँ  ढूँढे कोई  ,
यादों के  घरों  को, 
यह तो  चेहरे -दर-चेहरे 
वक्त के  साथ  बदल जाते है |

हर एक  का, 
हर एक  से, 
निश्चित  है  समय |

बीते वक्त में  ,
अब  जा के  कही
कोई मिलता है  कहाँ

वो  दोस्त मेरे, 
वो भाई  मेरा  ,
वो  छोटी  बहनें
एक  छोटा -सा घर मेरा।
एक  सपना  था  मेरा |

मां-बाप तक ही, 
यहाँ सारी  ,
दुनिया  सिमट जाती थी |
मेरे घर से  छोटी -सी सड़क 
शहर  तक भी  जाती थी |
 
वक्त  गुजरा, 
सब बदल गया |
कोई मोल न था, 
जिन लम्हों का 
आज  लगता है कि, 
सब वे-मोल गया |

मैं  बदला,
सब बदल गया | 
मैं  हूँ  वही, 
पर अब वो  सब |
वो नहीं कहीं |

वो  गलिया, 
वो दरवाज़े ,
अब  बुलाते  नही |
वक्त के  साथ, 
उन  से  मैं, 
मुझसे वो  अनजान सही|

क्योंकि वो  चेहरे पुराने 
अब  कहीं नज़र आते  नही |

              
                  प्रीति शर्मा "असीम" 


तेरी जुदाई



लगता है तेरी जुदाई हमें मार डालेगी, 
आँसूओं की ये बरसात डूबों डालेगी, 
सावन में आने का वादा था  तुम्हारा, 
लगता है यूँ ही ये विरह मार डालेगी।

ये दुनियाँ तेरे मेरे प्रेम की थी  दुश्मन, 
आज ये हम पर तुम पर उड़ाती हँसी, 
तुमने बिसार दिये सारे वो  रात- दिन,
आज हमें याद आती है वो तारें गिन।

इस तरह किसी के प्यार को भूलाना, 
आसान नहीं होता मेरे दिलवर जाना, 
है मुहब्बत खूदा की नेमत याद है ना, 
दिल से दिल को तोड़कर चले जाना।


             डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन


मैं_आज_भी_आरक्षण_के_खिलाफ_हूं


 आज हर कोई युवा यही कहेगा कि आरक्षण हमारे देश में कैंसर की तरह है। जो हमारे देश को अंदर ही अंदर खोखला करता जा रहा है। मुझे ऐसा लगता है कि आरक्षण गलत है मगर कैंसर नहीं है। यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अभी हाल ही में राम मंदिर भूमि पूजन व शिलान्यास कार्यक्रम हुआ। जिसमें देश के प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल संवैधानिक पद के रूप में इस कार्यक्रम में मौजूद थे। मेरे समझ में एक बात नहीं आई आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत इस कार्यक्रम में कैसे प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल के साथ इस कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं। मोहन भागवत किसी संवैधानिक पद पर नहीं है, उसके बावजूद भी वह शामिल हुए। क्या मोहन भागवत की जगह देश के सर्वोच्च व्यक्ति यानी राष्ट्रपति महोदय शामिल नहीं हो सकते थे ? मेरा दूसरा सवाल है क्या राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक अछूत दलित होने के कारण इस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया ? 


अगर हिंदू धर्म में छुआछूत नहीं है या खत्म हो गई है तो फिर इस कार्यक्रम में किसी अछूत व दलित को क्यों नहीं बुलाया गया ? अब आप सोच रहे होंगे कि मेरे यहां सवाल आरक्षण से बिल्कुल हटकर है। हां मैं इन सवालों के माध्यम से आप को जताना चाहता हूं कि आरक्षण की जरूरत क्यों पड़ी ? आरक्षण की जरूरत हमारे देश में इसलिए पड़ी क्योंकि यहां पर जातिवाद के चलते लोगों पर अत्याचार हुआ करता था। जातिवाद का अत्याचार आज भी हमारे देश में होता है जो आप टीवी न्यूज़ चैनलों और अखबारों के जरिए हर रोज सुनते और पढ़ते होंगे। हां यह अत्याचार आज ही नहीं बल्कि हजारों सालों से चलता आ रहा है। 


आज भी आप उठाकर देख लीजिए जितने भी सफाई कर्मचारी हैं वह सभी आपको नीच जाति यानी अछूत लोग ही मिलेंगे जबकि हिंदुओं के सभी मंदिरों में पुजारी सिर्फ ब्राह्मण ही मिलेंगे ऐसा क्यों ? अगर समानता की बात करनी है तो हर जगह क्यों नहीं करें ? जो लोग सीवर लाइन साफ करते हैं उनकी कई सारी पीढ़ियां वही काम करती आ रही है क्या किसी ने उन्हें मुक्ति दिलाने का काम किया ? आपको मालूम है आज भी देश में ऐसे लोग हैं जिनकी पहली पीढ़ी ने किताब देखी है, मगर मैं फिर भी आरक्षण के खिलाफ हूं। अगर समाज को जातिवाद जिंदा रखना ही है, या हिंदू समाज जातिवाद को अपनी संस्कृति समझता है। मैं फिर उन सभी लोगों से कहना चाहूंगा आप अपने प्रवचन और समानता का ढोंग अपने तक ही सीमित रखना। याद रखिए जैसे-जैसे निचली जाति के लोग यानी अछूत लोग शिक्षा ग्रहण करेंगे, वैसे वैसे आप की हकीकत दुनिया के सामने खुलती रहेगी। भले ही आप अपने धर्म ग्रंथ शास्त्रों में कितना ही संशोधन क्यों ना कर लें पर आने वाला भविष्य भी उन्हीं के साथ खड़ा होगा यह मुझे संपूर्ण विश्वास है। इतना ही नहीं आपकी आने वाली पीढ़ी भी आपकी कुर्ता और पाखंड को लात मारेगी। अब वह जमाना गया जब लोग बाबा हकीम के पास जाया करते थे और पेट दर्द के लिए बाबा ऐसे झूठ मुठ का मंत्र पढ़ देता था। आज की दुनिया सिर्फ हकीकत और लॉजिक पर विश्वास करती है। आज की दुनिया चांद और मंगल पर है।


आजादी से पहले आरक्षण नहीं था मुझे बताओ फिर देश गुलाम क्यों बना आरक्षण पर रंडी रोना रोने वालों ? निचली जाति ने तो अपना काम करना बंद किया ही नहीं है जबकि तुमने ही अपना काम बंद कर दिया है। जिसे तुम आज इंजीनियर कहते हो, वह पहले मिस्त्री और मजदूर हुआ करते थे। जिनकी जाति सिर्फ शूद्र हुआ करती थी। अगर मेरी बातों पर विश्वास नहीं है तो उठा कर देख लीजिए इतिहास और खोजिए क्या आप के जितने भी बड़े बड़े मंदिर और धार्मिक धरोहर हैं- उनका निर्माण किन लोगों ने किया है ? और तो और आपके भगवानों को आकार भी एक मूर्तिकार ही देता है जो अधिकतर निकले जाति के ही होते हैं। आरक्षण व्यवस्था तो आपकी ग्रंथों से शुरू हुई है- आखिर एक व्यक्ति सर्वोच्च और दूसरा व्यक्ति अशुद्ध कैसी हो सकता है ? खुद का दिमाग लगाइए और सोचिए क्या यह संभव है। आपके ग्रंथों में तो वर्ण व्यवस्था का जिक्र है। उस व्यवस्था के अनुसार अगर ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और उनकी महिलाओं का शोषण भी करें तो भी उसे कोई सजा नहीं मिलती थी।


 भला यह आरक्षण नहीं था क्या ? तुम्हारे ही ग्रंथों के अनुसार कई जगह भगवानों ने असुरों को हराने के लिए छल-कपट का सहारा लिया क्या वह आरक्षण नहीं था क्या ? तुम्हारे ही ग्रंथों में लिखा है कोई अछूत यानी शूद्र ग्रंथों का अध्ययन नहीं करेगा अगर वह अध्ययन करता है तो उसकी आंखों और कानों में शीशा पिघलाकर डाल दिया जाएगा। क्या यह आरक्षण नहीं है ? आज तक तुम्हारे मंदिरों में एक भी शूद्र व अछूत पुजारी नहीं बन सका क्या यह आरक्षण नहीं है ? तुम्हारे कई ग्रंथों में छुआछूत और वर्ण व्यवस्था का वर्णन है। तो फिर तुम कैसे कहते हो कि हमारे सनातन यानि हिंदू धर्म में ऐसा है ही नहीं। अगर नहीं है तो फिर आगे आओ शादी ब्याह एक-दूसरे से करो और योग्यता के अनुसार पुजारी पंडित बनाओ। अगर तुम्हारे समाज में छुआछूत जातिवाद वर्ण व्यवस्था नहीं थी, तो फिर तुम्हारे सभी ग्रंथ झूठे हैं। 


हां एक और बात अंत में कहते जा रहा हूं- स्त्री को तो वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे रखा गया था यानी शूद्र उसे भी नीचे। अब आप अलग-अलग माताओं के नाम लेकर इसे नकारने और झूठलाने का प्रयास करोगे। अगर तुम्हारे धर्म में स्त्री को इतना ही सम्मान मिला होता तो तुम्हारे धर्म के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी अपने बेटी सरस्वती से शादी नहीं करते जबकि उनकी चार पत्नियां थी। इसके अलावा भी आपके कई भगवानों के 4, 5, 2 पत्नियां का वर्णन भी है। हां मैं आरक्षण का विरोधी हूं पूर्ण रूप से शायद ही आप मेरे से ज्यादा होंगे। आरक्षण को भीख कहने वालों से मैं पूछना चाहता हूं बिना योग्यता बिना टेस्ट पास किए हुए सिर्फ ब्राह्मण के नाम पर मंदिर पर बैठे पुजारियों पर आपका क्या विचार है ? 


हां मैं आरक्षण का कट्टर विरोधी हूं, मगर उससे कहीं ज्यादा में तुम्हारे मनगढ़ंत कहानियों और वर्ण व्यवस्था का विरोधी हूं। याद रखिए यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस देश को शिक्षित, आत्मनिर्भर, विकसित होने की जरूरत है। मेरा सपना है यह देश पाखंडवाद, जातिवाद, धर्मवाद से मुक्त हो। मैं नहीं जय श्री राम, जय भीम, जय भीम, अल्लाह हू अकबर और ना ही कम्युनिस्ट विचारधारा का हूं। मैं सिर्फ सिर्फ सिर्फ इंसानियत का समर्थन हूं। बाकी आप मुझे जितनी गालियां दे दो मैं आपके उन गालियों को तुम्हारे मनगढ़ंत कहानियों के शिव की तरह अपने गले में विष के रूप में पी लूंगा।


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                                                               #दीपक_कोहली 


 

आदेश


शमशान की राख को

सीने से लिपटाए फिरता हूँ,

महाकाल का भगत हूँ

उनका नाम लिए फिरते हूँ,

मैं चुपचाप

सभी की सुनता हूं

किसी को कुछ बोलता नहीं।

आदेश है माँ महाकाली का

बेमतलब इसलिए

किसी को सताता नहीं।

गुर्राता है कोई तो

मैं चुप रहता हूँ

फिर भी बेमतलब किसी को

मौत की नींद सुलाता नहीं।

खामोशियां है बहुत दफन

मेरे इस सीने में

मगर अपनी मां काली के अलावा

किसी को सुनाता नहीं।

              

                     राजीव डोगरा 'विमल'


 

"किसान"



जो सूरज की तपिश और परछाई
से अनुमान लगा लेता है वक्त का।

जो आबपाशी में बहते पानी को, 
समझता है कोई सुंदर जलप्रपात।

जो खेतों में लहराते गेहूँ और अलसी की 
परवरिश करता है अपनी संतान की भांति।

उसे प्रकृति के रमणीय दृश्य देखने हेतु 
आवश्यकता नही होती, किसी पर्यटक स्थान की।

जो अपनी अन्नपूर्णा भूमि में 
अनुभव करता है 
स्वर्ग के सुंदर उपवन का।

उसी किसान ने हर युग मे 
समृद्ध किया भारत वर्ष को
धन्यधान से।

बनाया  हमारी सँस्कृति को 
प्रत्येक क्षेत्र में विश्वगुरु ।

और पहना दिया ताज 
उसके मस्तक पर 
स्वर्ण युग होने का।

हमारा प्राचीन इतिहास गवाह है,
जब भी किसी मनुष्य से 
इस अन्नदाता का शोषण 
अपने स्वार्थ हेतु किया है।

तब- तब त्रासदी के झंझावात ने 
उसकी नीव को उखाड़ फेका है।

और तब -तब मानव संस्कृति के साथ
मानवता भी शोषण के पेड़ पर
अपने हक की याचना करते हुए
दम तोड़ गई।
और यही शोषण उस क्षेत्र के
पतन का मुख्य कारण बना है।


                          ममता मालवीय 'अनामिका'


औरत भी आजाद है।






यह लेख लिखने का मकसद मेरा सिर्फ इतना है, जो लोग औरत को अपने धर्म, अपनी जाति और अपने परिवार की संपत्ति समझते हैं। मैं उनसे कहना चाहता हूं औरत भी आजाद है। औरत भले ही मेरी मां हो, मेरी पत्नी हो और मेरी बहन हो। उसे भी अपने अनुसार फैसला लेने, करने और चलने का अधिकार है। हाल ही में तनिष्क ज्वेलर्स ने एक विज्ञापन बनाया था क्योंकि इस वक्त त्योहारों का सीजन है। मगर उस विज्ञापन को देखकर हिंदू मुस्लिम की बात होने लगी। किसी ने कहा लड़की हिंदू ही क्यों दिखाई गई..? मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं आप तब कहां मर जाते हैं जब बड़े-बड़े पैसों वाले लोग हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्मों से शादी करते हैं। 

चलो तुम उनकी बात छोड़ो तुम इतना बताओ जिस हिंदू धर्म की तुम वकालत कर रहे हो, उस धर्म में ब्राह्मण और राजपूत में आपस में शादी नहीं होती है। क्या कभी तुमने इस विषय पर बोला...? और तो और छोड़ो कई स्थानों पर ब्राह्मण और ब्राह्मण यानि अलग-अलग ब्राह्मणों में भी शादी नहीं होती है। इस बात को शायद तुमने कभी सोचा ही नहीं होगा, क्योंकि इतना सोचने के लिए थोड़ा सा पढ़ना पड़ता है और समाज को समझना पड़ता है। अगर मेरे इस लेख में कुछ भी गलत हो तो आप मुझे तर्कों से काटना मैं उन तर्कों को स्वीकार करूंगा।

 मुस्लिम समाज वालों तुम भी दूध के धुले नहीं हो। तुम्हारे समाज की भी हकीकत हमें मालूम है। यह मत भूलना कि तुम्हारे समाज में भी छुआछूत जातिवाद नहीं है। इस्लाम के नाम पर तुम्हारे धर्म के ठेकेदारों ने स्त्री की जो दशा अपने मन से गणित की है वह भी सोचनीय है। मैं तुमसे पूछना चाहता हूं क्या तुमने कभी इन धर्म के ठेकेदारों का विरोध किया..? नहीं..! क्योंकि तुम्हें लगता है अगर हम इनका विरोध करेंगे तो पूरे विश्व में इसका क्या संदेश जाएगा। भारत में आज भी मुस्लिम समाज सबसे पिछड़ा हुआ है, क्या तुम लोगों ने इस पर विचार विमर्श किया..? कभी नहीं क्योंकि तुम्हें लगता है पिछड़ापन हमारे समाज की पहचान है। क्या संस्कृति के नाम पर बुर्का पहनना जरूरी है वह भी 21वीं सदी में जहां दुनिया वीडियो कॉलिंग से एक दूसरे से बात कर रही है..? 

इन सब चीजों का जवाब आप लोगों के पास नहीं होगा और हां अन्य धर्मों में भी कई सारी कमियां हैं। उन सभी कमियों को दूर करने के लिए हम सभी को आगे आना होगा। मुझे ऐसा लगता है इन कमियों को दूर स्त्री समाज को आगे लाकर ही किया जा सकता है। जब तक समाज में स्त्री को बराबरी का दर्जा नहीं मिलेगा तब तक समाज में पाखंड और स्त्रियों का शोषण होता रहेगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की औरत भी आजाद है। औरत को भी स्वतंत्र रूप से सोचने, कपड़े पहनने, अकेला चलने, शादी करने, बच्चा पैदा करने, गैर रिश्ता रखने इत्यादि अधिकार प्राप्त है। 

यहां पर कुछ लोग अपने धर्म ग्रंथ और शास्त्रों सहित कई चीजों का हवाला देंगे कि स्त्री हमारे समाज और हमारे घर की इज्जत मान प्रतिष्ठा है। मेरा उन सभी लोगों से सवाल है क्या सिर्फ स्त्री को ही यह सम्मान देना सही है...? मुझे लगता है एकदम गलत है। तुम लोग अपने घर और समाज के मान, प्रतिष्ठान के नाम पर स्त्री पर जितना अत्याचार करते हो। अगर इतना अत्याचार स्त्री आप लोगों पर करें और बोले कि आप लोग समाज और घर की मान, प्रतिष्ठान हैं तो क्या तुम सह सकते हो...? कदापि नहींं...! क्योंकि तुम्हारी मानसिकता पुरुष सत्ता और पितृसत्ता से ग्रस्त है। कई महापुरुष कहते हैं अगर आपको किसी देश की तरक्की और विकास को देखना है तो वहां के औरतों की दशा देखिए आपको पता चल जाएगा उस देश ने कितना विकास और तरक्की की है। 



                                                                                                         #दीप_मदिरा




14 October 2020

क्या रेप और यौन उत्पीड़न के लिए पॉर्न और नशा जिम्मेदार है..?

भले ही आपने बड़े बड़े लेखकों और बुद्धिजीवी को यह कहते हुए सुना होगा कि पोर्न साइट व नशे के कारण देश में रेप केस बढ़ रहे हैं। मगर मैं इन बुद्धिजीवी और लेखकों से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं। मुझे बताइए आप 2019 की रिपोर्ट कहती है भारत में 80% लोग नियमित व कभी-कभी पोर्न देखते हैं। इस आंकड़े में महिला और पुरुषों दोनों की संख्या बराबर है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि भारत के लोगों में सेक्स से संबंधित जानकारी बहुत कम है।



इसी कम जानकारी के चक्कर में भारत में रेप केस होते हैं। हमारे यहां शादी करने के बाद भी युवक-युवतियों को सेक्स के बारे में सही से जानकारी नहीं होती है। जो हमारे समाज के लिए एक समस्या है। इसके लिए कहीं ना कहीं हमारी परंपरा और सामाजिक परिदृश्यता भी जिम्मेदार है। कई विशेषज्ञ बताते हैं अगर नियमित रूप से सेक्स सही तरीके से किया जाए तो सेक्स सबसे बड़ा योग है। मगर ऐसी जानकारियां बहुत कम लोगों के पास उपलब्ध होंगी। हमें सेक्सी संबंधित सवालों से भागना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें जानने का प्रयास करना चाहिए और हमें सेक्स के बारे में अपने बच्चों को भी थोड़ा बहुत जानकारी प्रदान करनी चाहिए। जिससे उसके मन में सेक्स को लेकर सवाल पैदा ना हो। अगर उसके मन में सवाल पैदा होगा भी तो वह आपसे या हमसे सीधे उस सवाल का जवाब पूछेगा। मैं उन बुद्धिजीवियों और लेखकों को इतना बताना चाहता हूं कि मोबाइल और इंटरनेट आने से पहले का सरकारी आंकड़ा देख लीजिए और अपने इतिहास को एक बार पलट कर देखिए। आपको हकीकत पता चल जाएगी।

हां मैं यह स्वीकार करता हूं कि आज के युवाओं में पोर्न का एक नशा यानी एडिशन हो रहा है। जो उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर कर रहा है। मेरा यहां पर सरकार को एक सुझाव है कि सभी स्कूलों में सेक्स से संबंधित विषय या कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे बच्चों में सेक्स का सही ज्ञान हो सके। जिससे उनके मन में सेक्स को लेकर प्रश्न खड़ा ना हो। यह प्रकृति का नियम है, कि जब-जब हमारे मन में सवाल पैदा होंगे हम उन्हें जाने काम बहुत सारा प्रयत्न करेंगे। इसी प्रयत्न के चक्कर में हमारे देश की युवा कभी कभी गलत मार्ग व कदम उठा लेते हैं। भारत में रेप केस शहरों से ज्यादा गांव में होते हैं। क्या मुझे वह लेखक बता सकते हैं कि ऐसा क्यों है..? अगर आप सभी लोग मानते हैं की पोर्न देखना गलत है तो फिर मैं कामसूत्र और कई मंदिरों में बने सेक्स करते हुए मूर्तियों को भी गलत मानता हूं। भले ही वह आपकी संस्कृति सभ्यता का प्रतीक ही क्यों ना हो। रेप, यौन उत्पीड़न जैसी घटनाओं के लिए कई सारी चीजें जिम्मेदार है सिर्फ पोर्न साइट और नशा को जिम्मेदार ठहराना गलत है।

चलो मैं मान लेता हूं पोर्न देखना यानी रेप को बढ़ावा देना जैसा है, तो फिर हमारी सरकार इन साइटों पर बैन क्यों नहीं लगाती है। जिस प्रकार हमारी सरकार ने चाइनीस एप्लीकेशन पर बैन लगाया ठीक उसी तरीके से पॉर्न साइट और संपूर्ण देश में नशे पर बैन लगा देना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बता दूं- पोर्न साइड और नशे पर पूर्ण रूप से बैन किसी भी हिसाब से नहीं लग सकता है। नशा और पोर्न साइटों से सरकार को बहुत सारी आमदनी होती है। वैसे मुझे लगता है रेप, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा के लिए कई सारी चीजें जिम्मेदार है जैसी हमारा खान-पान, हमारा रहन सहन, हमारे कपड़े और कुछ हमारी संस्कृति जहां पुरुष प्रधानता का वर्चस्व है। जब कोई शादीशुदा मर्द अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध जाकर सेक्स करता है तो मैं उसे भी रेप कहता हूं। भारतीय संस्कृति में ऐसा हजारों सालों से होता रहा है। हमारे देश के राजा लोग सैकड़ों सैकड़ों रानियां रखते थे, अंदाजा लगाइए क्या वह सभी रानियां अपने अनुसार सेक्स करती होंगी..? या फिर जब राजा का मन करता होगा वह राजा किसी एक रानी के साथ सेक्स करता होगा..!

दूसरा मुझे लगता है- धर्म, जाति और छुआछूत रेप, यौन उत्पीड़न और हिंसा का सबसे बड़ा रक्षक है। अब आपके मन में सवाल उठेगा आखिर कैसे और क्यों..? इसका जवाब यह है कि आपके देश में आज भी रेप और हिंसा होने पर सबसे पहले आरोपी और पीड़िता की जाति और धर्म देखा जाता है। बाकी आप समझदार है मैं क्या कहना चाहता हूं क्योंकि आप सोशल मीडिया चला रहे हैं। मैं भारतीय संस्कृति की स्त्रियों पोशाक साड़ी को सबसे गंदा मानता हूं। आप बोलेंगे क्यों...? ज़रा आप सोचिए जींस, सूट सही है या फिर साड़ी..? मुझे लगता है जींस और सूट स्त्रियों के लिए सबसे अच्छे हैं। उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए भी और सामाजिक परिदृश्य के लिए भी, बाकी हमारे देश की नारी शक्ति स्वतंत्र हैं उनका जो मन करें वह वो पहन सकती है।

अंतिम में मैं यह कहना चाहूंगा- आप सभी अपने बच्चों को सेक्स से संबंधित जानकारी प्रदान करें और उनके सवालों का सही जवाब उन्हें दें। ताकि आपके बच्चे को अपने सवालों को खोजने के लिए कोई गंदा रास्ता ना अपनाना पड़े। सामाजिक और पारिवारिक जागरूकता में ही हम सब की जागरूकता है। इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि अपने परिवार के सभी सदस्यों को जागरूक रहने के लिए प्रेरित करें।



#दीपक_कोहली


11 October 2020

स्वप्न




आज उन्मुक्त उड़ने का स्वप्न देखती है बेटियां।
पाबन्दियों में भी घर परिवार ,देखती है बेटियां।।

वे भी देश के विकास में आगे आना चाहती है।
घर का नाम रोशन करना चाहती है बेटियां।।

देखती है ऊँचे स्वप्न ,मंजिल तक पहुंच जाती है।
कमतर नहीं , अब बेटों से आगे बढ़ती है बेटियाँ।।

जमीं से फलक तक काम कर रही है बेटियां।
राष्ट्र के निर्माण में नित आगे बढ़ रही है बेटियां।।

दृढ़ संकल्प ले चली है आज देश की बेटियां।
खगोल ,भूगोल , अंतरिक्ष नापती है बेटियाँ।।

स्वप्न को साकार करती हिंदुस्तान की बेटियां।
सियासत का भी नेतृत्व करती है बेटियाँ।।

ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतती है ये बेटियां।
देश का हर समय सम्मान बढ़ाती है ये बेटियां।।

डॉ. राजेश पुरोहित

वह सैनिक ही होता है

वह सैनिक ही होता है, जो हवाओं से बात करता है।
वह सैनिक ही होता है, जो पहाड़ों से बात करता है।
वह सैनिक ही होता है, जो नदियों से बात करता है।
वह सैनिक ही होता है, जो मौत से बात करता है।

वह सैनिक ही होता है, जो पेड़-पौधों से बात करता है।
वह सैनिक ही होता है, जो शाम से बात करता है।
वह सैनिक ही होता है, जो उगते सूरज से बात करता है।
वह सैनिक ही होता है, जो गिरते बर्फ से बात करता है।

वह सैनिक ही होता है, जो परिंदों से बात करता है।
वह सैनिक ही होता है, जो यादों से बात करता है।
वह सैनिक ही होता है, जो दुश्मन से बात करता है।
वह सैनिक ही होता है, जो कफन से बात करता है।

@दीपक 'मदिरा'