बचपन में ही सब सहना शुरू कर देती हैं,
आखिर क्यों ?
बेटा साईकिल चला सकता, बेटी चलाए तो
आवारा कहलाए, आखिर क्यों ?
खुलकर अगर हंस दे तो ये पवांदी लग जाए,
लड़का हो क्या लड़कीयां यूं जोर से नहीं हंसती हैं,
आखिर क्यों ?
दस साल की हुए नहीं अगर मासिक धर्म 9साल में
ही अा जाए और वो बच्चों के जैसे खुद को समझे
और पिता कंधे पे झूले तो यह कह कर हटाया जाय
अब बड़ी हुई,और कुछ ऐसा करें तो कहां जाए अभी
तुम बच्ची,वो बच्ची क्या समझे खुद को,
आखिर क्यों ?
शरीर की बनावट से वो12साल की उम्र में 18 साल
की दिखने लगे,स्कूल आकर घर मां बाप को बताए
की रास्ते में कुछ समस्या हो रही,तो मां बाप से डांट खा
जाए, की 12साल में कोई इसे कैसे झेड़ेगा,
आखिर क्यों ?
वो बच्ची ना बड़ी हो पाती ना बच्ची कोई उसकी
मानसिक स्थिति क्या समझ पाता,किशोरा अवस्था
में वैसे ही बच्चे कई परेशानियों से जूझते,अगर
ऐसे में परिवार के लोग उस बच्चे को ना समझे
आखिर क्यों ?
कम उम्र में शादी हो जाए और सब की आपेक्षा
उससे परिपक्वता वाली रहे, आखिर क्यों ?
जब वो बड़ी होती उसे रोक दिया जाता समाज
के डरावने सपने दिखा कर,उसे खुल कर जीने
की अपने सपनों को पूरा करने की इजाजत नहीं मिलती,
आखिर क्यों ?
लेकिन ये दिल कहां किसी की सुनता है उसे भी
हो जाता हैं किसी से प्यार,एक खूबसूत जिंदगी
के सपने बुनती है,उन सपनों को पूरा किए बिना
मां बाप की इज्जत के लिए वो किसी और के साथ
घर बसा लेती, आखिर क्यों ?
अपने दर्द अपने आसूं दिल में दबा कर नए घर में
कदम रखती हैं,सब की सुनती हैं,सब को खुश
रखने कि कोशिश करती हैं,पर अपने मन का
दर्द कहीं ना कह पाती, आखिर क्यों ?
वक्त कहां रुकता फिर शुरु होते रोज रोज के
झगड़े ताने अपनी परवाह किए बिना सब को
सुलझाने की कोशिश करती हैं, सब की सुनकर
भी कुछ नहीं कहती कोने में बैठ आंसु बहा लेती,
आखिर क्यों ?
सहती रहती जब सहना बहुत मुश्किल हो जाता
तो खुद में खुद को समेट लेती हैं,भूल जाती खुशी
किसे कहते बस अगर कुछ याद रहता तो एक दर्द,
आखिर क्यों ?
सहने को तो बहुत सह लेती हैं औरत जब नहीं
सहा जाता तो ख़ामोश कर लेती खुद को और दुनियां से
चली जाती, आखिर क्यों ?
चली जाती दुनियां से फिर भी लोगो की निगाह
में गुनहगार कहलाती, आखिर क्यों ?
लेखिका- मनीषा झा
स्थान- सिद्धार्थ नगर, उत्तरप्रदेश
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