साहित्य चक्र

26 May 2022

कविताः परिवार




क्यूं टूट रहा परिवार,
क्यूं एक दूसरे की हो
रही दो बाते नहीं बर्दाश्त,
रिश्ते नाते जिंदगी खूब सारा
प्यार, क्यूं टूट रहा परिवार,
थोड़ा गम खा लो नहीं करो 
टकरार,मत तोड़ो परिवार,
मत बदलों मन भाव को,
प्रेम रखो मन में,खुद से ना 
अलगाओ करो,मत तोड़ो परिवार,
मत तोड़ो परिवार,
नहीं कलंकित खून करो,ना भूलो संस्कार,
कांटे मत तुम बोओ सुंदर हो परिवार,
रहिए सबके बीच में,ना छोड़ो घर द्वार,
डाली से शोभा रहे रहे घर संसार,
मत तोड़ो परिवार,
छोड़ दिया परिवार तुम्हें तो, मत होना उदास,
मान नहीं होता कभी छूट अकेले आस,
सावधान दुश्मन रहे,जो बांटे परिवार,
समझो तुम इस बात को रहना उनसे दूर ही यार,
मत तोड़ो परिवार,
बाग ना सूखे प्रेम का,रखो खूब तुम स्नेह,
रिश्ते हो विश्वास से कैसे बरसे नेह,
घर की सूखी रोटी खा कर भी रहे परिवार उमंग,
उसी भरोसे आदमी,जाता लड़ हर जंग, 
मत तोड़ो परिवार,
आंगन को आंगन रखो,ना करना बर्बाद,
मत बांटो खिड़की यहां रहने दो आबाद,
रहो कलह से बचके, मत तोड़ो परिवार,
हंसे पड़ोसी जब खड़ा हो घर में दीवार,
मत तोड़ो परिवार, मिलकर रहो साथ साथ


लेखिका- मनीषा झा
स्थान- सिद्धार्थनगर, उत्तरप्रदेश




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