साहित्य चक्र

18 May 2022

कविताः मैं मजदूर





मैं मजदूर हूं,
गर्व से कहता हूं,
मैं मजदूर! हूं , मैं मजदूर हूं।

मेरे चेहरे पर ना कोई शिकन,
मैं बोझ उठाता हूं,
जूझता, बुझता हूं,
फक्र  से कहता हूं,
मैं मजदूर ! हूं ,मैं मजदूर हूं।

मैं भाग्य पर नहीं बैठता ,
नित कार्य करता हूं,
मैं अपने को कोसता नहीं,
मैं उनसे  लड़ता  हूं ,
मेरा अधिकार जो छीन लेते हैं,
मैं अपने पे नाज करता हूं,
क्योंकि, मैं मजदूर हूं ,
मैं मजदूर! हूं, मैं मजदूर हूं।


चेतना चितेरी
प्रयागराज, उत्तरप्रदेश


2 comments: