साहित्य चक्र

28 May 2022

कविताः किये जाता है





अश्क़ मेरा फ़र्क को अब राख़ किये जाता है 
ये   माहौल   और भी  बेबाक किये जाता है

मैंने अपनी बात की,  तिलमिला उठा है वो 
सदियों से हक़ मेरे जो हलाक़ किये जाता है 

अगर सीधी हुई  जंग तो  हम जीत जायेंगे 
इसलिये वो छुप के ज़ेहन चाक़ किये जाता है 

उनके मन को छूना चाहा था वो समझाने लगे 
किसका छूना किसको यहां नापाक किये जाता है 

मैं हर शब एक रिश्ता क्यों उससे जोड़ लेता हूँ 
वो शख़्स जो हर सुबह ही तलाक़ लिये जाता है 

हम शहद की मक्खी, मिठास हमसे लो मगर 
छत्तों पे पत्थर हमें ख़तरनाक किये जाता है

ख़ाक ही असल है,'लाख' है कब्ज़े की निशानी
ख़ाक से बना वजूद ,ख़ुद को ख़ाक किये जाता है

मेरी आहों से नहीं खामोशियों से भरा आसमाँ 
चुप मेरा देखना ज़मीं को अफ़लाक किये जाता है 

'मुक्त' तुम पागल हो या  मासूम हो  सच  में 
हमने तो सुना था दग़ा चालाक किये जाता है

'मुक्त' बूढ़ा हो गया  मगर वो चूमा नहीं  गया 
कहता हूँ तो कहते हैं कि मज़ाक किये जाता है


कवि- मोहन मुक्त

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