दूर इतनी है
मुझसे कि जितना आकाश,
मगर देखूं तो लगता है
जैसे तू मुझसे मिलती है रोज
जैसे धरती और आकाश
लगता है जैसे की इस ओर मैं हूँ
और तू उस ओर है
जब चाहे तब छू ले
तुझे मेरे तसव्वुर के हाथ
कभी कभी लगता है कि
तेरी खुशबू लेकर आया है
हवा का एक झोंका
सांसें तृप्त हो जाती हैं
तेरी सांसों की सुरभित बूंदों से...
- कैलाश आगरी
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