साहित्य चक्र

10 September 2016

-कहीं-कहीं देश मेरा-



            -कहीं-कहीं देश मेरा-
कहीं आरक्षण, तो कहीं भेदभाव,
कहीं जातिवाद, तो कहीं लिंगवाद।
कहीं नक्सलवाद,तो कहीं उग्रवाद,
इन्हीं सब में जल रहा देश मेरा।।

कहीं रेप तो, कहीं गैंगरेप,
कहीं भष्टाचार तो, कहीं आंदोलन।
कहीं घूसखोरी तो, कहीं लूटखोरी,
इन्हीं सब में जल रहा देश मेरा।।

कहीं घोटाले तो, कहीं चापलूसी,
कहीं शराबखोरी तो, कहीं लीसा तस्करी।
कहीं मारपीट तो कहीं चोरी-चकारी,

इन्हीं सब में जल रहा देश मेरा।।

                               कवि-दीपक कोहली

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