हिंसात्मक अहिंसा
जब - जब क्रान्तिकारियों ने आजादी का बिगुल बजाया था
तब-तब अहिंसा ने उनके मनोबल पर कहर बरपाया था
वतन के नौजवानो पर जुल्म हो तो हिंसा नही थी उन्ही,
नौजवानो से कीड़ा भी मर गया तो असली हिंसा वही थी
हर क्रांतिकारी की फाँसी पर गाँधी का हस्ताक्षर बताइये
क्या ऐसा ही होना चाहिये अहिंसा का सफर
क्रांतिकारी अरमानों की हिंसात्मक अहिंसा थी मोहनदास की.
बदौलत मचल के रह गये थे अरमां तड़पी भारती की आस थी
दिया क्रांतिकारियों का साथ नहीं जय हो अहिंसा के चाकू की है
ये गम की गाथा क्रांतिकारियों की सच्चाई पूजनीय बापू की
हिंसात्मक अहिंसा का प्रकोप इतना ज्यादा था
लगता है आजादी से भी समझौता का इरादा था
हरकतें जिसकी भारती के दामन पर तमाचा हो था
सत्ता का लोभ जिसे कहते क्यों चाचा हो
जिसकी एक गलती सौ अच्छाइयों पर भारी है
जिसकी बदौलत आज तक सीमा पर जंग जारी है
आजादी का उद्घोष हुआ जब देश की जनता सोई थी
सुन वतन के अरमॉ तड़पे, बिखरी बिंदिया रोई थी।
गर ये दो रईस आजादी से न खेले होते शायद
न पाक होता न ही कश्मीर के झमेले होते
रचनाकार- बलवन्त बावला
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