साहित्य चक्र

24 May 2024

जानिए झोई यानी कढ़ी कैसे बनाते है ?

झोई अथवा झोली यानि की कढ़ी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के भोजन में विभिन्न प्रकार से बनाई जाती है। यहाँ आप अलग-अलग झोई के स्वाद ले सकते हैं। गरीब से लेकर अमीर तक सबके घर में यह झोई बनाई जाती है। झोई को सबने अपने-अपने तरीके और क्षमता के अनुसार नवीन रूप देकर स्वादिष्ट बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।




यहाँ की स्थानीय भाषा में एक कहावत प्रसिद्ध है कि झोई किसी के भी घर की खाओ अच्छी लगती है। झोई के साथ लाल चावल या कौणी (झिंगोर) का भात खाया जाता है। यहाँ भात और झोई की अच्छी दोस्ती दिखाई देती है, तभी गर्मियों के मौसम में सप्ताह में दो-तीन दिन झोई-भात खाना यहाँ आम बात है। हाँ अब झोई-भात धीरे-धीरे कम हो रहा है, क्योंकि स्थानीय लोगों ने गाय, भैंस पालने बंद कर दिए हैं। झोई को दही, छाछ, नींबू और टमाटर से बनाते है। यहाँ के स्थानीय लोगों झोई के साथ रोटी भी खाना पसंद करते है। झोई के साथ हरी सब्जी, प्याज और तेल में तली लाल मिर्च भी खायी जाती है।

वैसे झोई को कढ़ी भी कहां जाता है, मगर कढ़ी में कढ़ी पत्ते और बेसन के पकौड़े डाले जाते है, जबकि झोई में पहाड़ी मूली डालकर भी बनाई जाती है। झोई का स्वाद स्थानीय तरीके से बनाने में ही है, क्योंकि हाथ से पीसे स्थानीय मसाले इसे अलग बनाते हैं। झोई के स्थानीय नाम- कणझोई, दै झोई, छां झोई, निमूवे झोई, पहाड़ी टमाटरे झोई, अमचूरे अथवा ख्वैड़ा झोई आदि हैं। झोई को लेकर स्थानीय लोग कहते है- झोई में तभी स्वाद आता है, जब इसमें 22 उबाल आते हैं।


- स्थानीय लोगों की बात पर आधारित लेख


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