साहित्य चक्र

15 May 2024

कविताः अजीब दास्तां




अंदर ही अंदर लोग 
कफ़न ओढ़ रहे है
मोहब्बत के नाम पर 
दफन हो रहे है।

देखते नहीं सुनते नहीं 
समझते भी नहीं
बस मोहब्बत के नाम पर 
गम ढो रहे है।

अपनों का परायों का 
यहां कोई भेद नहीं
अपने मतलब के लिए 
बस छल कर रहे है।

जीत का हार का
किसी को कोई मतलब नहीं 
बस अपने रुतबे के लिए
औरों को गिरा रहे है।

                                             - डॉ. राजीव डोगरा

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