साहित्य चक्र

15 May 2024

कविताः हे मतदाता




हे मतदाता !, हे राष्ट्र निर्माता !
दारू मुर्गे पर ना बिक जाना।
प्रत्याशी को समझ परख कर,
मतदान जरूर तुम कर आना।।

लोकतंत्र के तुम हो आधार,
वोट तुम्हारे विकास सूत्रधार।
जाति धर्म से ऊपर उठ कर ,
मतदान जरूर तुम कर आना।।

हे भाग्य विधाता !, हे मतदाता !
अबकी फिर चूक ना जाना।
लोभ भय में ना फंस तुम,
ईमानदार प्रत्याशी चुन लाना।।

हे मतदाता तुम भी,
अपनी ताकत को पहचानो।
नेता तुम्हारा पढ़ा लिखा हो,
अबकी ऐसा तुम चुन डालो।।

हे मतदाता !, हे राष्ट्र निर्माता !
तुम्हारा मत है बड़ा अनमोल।
दारू, मुर्गे के लालच में,
अबकी ना दो इसे फिर तोल।।


                                                     - अंकुर सिंह


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