साहित्य चक्र

15 May 2024

हल्का हल्का सा प्रेम

परिपक्व स्त्रियाँ भी सोलह वर्षीय कमसिन बाला की तरह चंचल हो जाती हैं ज़ब लोग कहते हैं की आपसे लगाव है। आपको  देखते ही  प्रेम हो गया। वह अपने उस प्रियवर के सामने इतराती है,चहकती हैं, बहकती हैं, सब कुछ भूल, अल्हड़ नदी सी बहना चाहती हैं। अपने बेहद चाहने वाले मे विलुप्त होना चाहती हैं, सरस्वती नदी की भांति, किंतु अपने अस्तित्व मर्यादा के संग। कभी झाँकना किसी परिपक्व प्रेम में पड़ी स्त्री की सीप सी आँखों में, मोती बना देंगी तुम्हें,डूब जाओगे देखना उन आँखों में। 





वह दिखाएंगी नहीं कि तुमने उसके दिल में कब कुछ कुछ घर बना लिया। उनके चेहरे पर स्वतः एक चंचलता आ जाती है। बिना बात के वो मुस्कुराती नजर आती है। और उसकी मुस्कुराहट की वजह तुम होते हो। उसके अल्हड़पन को उसके बहाव को रोकना मत समा लेना उसे। 

कभी बेहद करीब जाकर सुनना उसकी धड़कनों को तुम खुद मंत्र मुग्द्ध ना हो गए तो देखना। कभी बलखाती झुमको को उसके गालों से हटा देना। करीने से समेटी हुई बालों को धीरे से खोल देना। और फिर पढ़ना उसके चेहरे की भावभंगीमा उसके हाव भाव। उसकी ही आंखों से काजल निकाल उसे ही लगा देना ये कहना तुम्हें अपनी नजर से बचा रहा हूँ। कहना कभी! तुम्हारी आंखों की काजल जान ले लेगी  एक दिन। बस ऐसे ही छोटी मोटी खुशियों की वह चाह रखती है अपने दिल में। ऐसा ही इश्क करना तुम उससे। समझे तुम।


                                                                        - सविता सिंह मीरा 


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