साहित्य चक्र

15 May 2024

कविताः निर्णय




जब विकल्प नहीं हो जीवन में,
अंतर्द्वंद चल रहा हो मन में,
जब राह न कोई सूझ रही,
इस कदर अँधेरा हो वन में,

जब लगे कि दोनों जाया है,
दोनों में कुछ खोया पाया है,
सही-गलत की उहापोह में,
नाहक ही वक्त गवांया है,

हर बात में कोई अर्थ लगे,
सारी तरकीबें व्यर्थ लगें,
निर्णय बड़ा ज़रूरी हो पर,
खुद में न इतनी सामर्थ्य लगे,

आँखें मूँद उसे तुम याद करो,
तुम ! इश्वर से संवाद करो,
थोड़ी देर ठहर कर सोचो,
अपनी ऊर्जा न यूँ बर्बाद करो,

औरों की चिंता छोड़ वहीँ,
निर्णय होगा भीतर ही कहीं,
फिर बढ़ जाना उस पथ पर,
जो तुम्हारे दिल को लगे सही,

छूटे पर मत पछताना तुम,
निर्णय लेकर मत रोना तुम,
इश्वर के नाम समर्पित कर,
बस चैन की नींद सोना तुम,

कैसे भी निर्णय लोगे तुम,
चुनने में मुश्किल होगी,
पर मन का निर्णय लोगे तो,
आगे की यात्रा ज़रा सरल होगी,

नियति के आगे जीवन में ,
तुम्हारा चयन खड़ा नहीं होता,
कोई भी कैसा भी निर्णय ,
जीवन से बड़ा नहीं होता।


                                 - विनोद 

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