साहित्य चक्र

24 October 2017

*आंगन*










आंगन खिल उठता जब बेटी घर मे आती है,
आते ही माँ की लाडली बन जाती है...।

घर की इज़्ज़त कहलाती है,

जब जब बेटी पढ़ने जाती ,
पिता की आंखे भर आती...।

पढ़ते ही जब वापस आती,
माँ को सारा हाल बताती।
भाई भी खुश हो जाता है,
हर पल बहन की खुशी मनाता है...।

बेटी बड़ी जब हो जाती है,
पिता को शादी की चिन्ता हो जाती है...।

माँ को नींद नही आती है,
भाई की भी आंखे सोच सोच भर आती है..।

शादी जब हो जाती है,
बेटी डोली में जाती है...।

सभी की आंखे भर आती है,
पहले पिता के घर की लक्ष्मी थी,
अब ससुराल के घर की लक्ष्मी है...।

बेटी भी चिड़िया की तरह बन जाती है,
फिर पिता के घर से 
ससुराल के लिए उड़ जाती है...।

पहले पिता के घर की इज़्ज़त थी,
अब ससुराल की इज़्ज़त बन जाती है...।

धन्य है वो मात पिता जिनके 
आंगन में बेटी आती है...।

बेटी कभी परायी नही होती,
ये तो दोनों घर का दीया जलाती है...।

ओर फिर हर पल, हर त्यौहार पर ,
दोनों घर के लिए खुशियां मनाती है...।
                     



                                                                                 कवि- अमन वशिष्ठ




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