साहित्य चक्र

07 October 2017

* जिंदगी के मोड़ पर *



बालों में चांदी
दांतों में सोना आ गया
उम्र के इस पड़ाव में

तू साया बन मिल गया
शिकायत खुद से करूँ 
या करूँ रब से
तुझ बिन साथी मैं
तन्हा थी न जाने कब से
तेरी ताप न मिली तो क्या
तेरी छांव ही सही
कुछ तो मिला सार्थक
इस निर्रथक जीवन में
अंतस के रसातल में
ग़मों का कारोबार था
फैला हर तरफ 
आंसुओं का बाजार था
खारे अश्कों का वृहद् 
समंदर था जिसने
कभी डूबने भी न दिया
शायद इसलिए ही कि
मिलना तय था तुमसे
जीवन के अंतिम मोड़ पर


                                                                आरती लोहनी

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