साहित्य चक्र

07 October 2017

* प्रेम *




प्रेम अब एफ.बी  पर दिखता है
अहसास वटसप पर चलता है
व्यस्त सब अपनी अपनी दुनिया में
अनजाना भी पहचाना सा लगता है।।

विश्वास लाइक कमेंट में बिकता है
कोई तन्हा है, कोई अकेला हँसता है
गुरूप गुरूप के खेल में
कोई गिरता कोई संभलता है।।

अपनो के लिए वक्त नहीं निकलता है
गैरो से अटूट बना रिश्ता है
चार दीवारो से बना मकान
घर सा नहीं लगता है।।

डी.पी पर प्यार छलकता है
सैल्फी का नशा सिर चढता है
साथ बैठा पूरा परिवार
परिवार सा नहीं दिखता है 
परिवार सा नहीं दिखता है।।




                                                                    कवियात्री- रामेश्वरी नादान


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