साहित्य चक्र

13 July 2024

कविताः मां



प्रेमिका जितनी सुंदर नहीं होती
और थोड़ा बूढ़ी भी होती है।
हमें जब समझ आ जाती है तो 
हम कहते हैं
'मां तुम कुछ समझती नहीं हो।'
फिर मां कुछ बोलती नहीं है।
चुपचाप घर के एक कोने में बैठ कर
अपने बाई से दर्द करते 
पैर को दबाती रहती है।
बाद में एक दिन 
मां मर जाती है
और हम दोनों हाथ जोड़ कर 
कह नहीं सकते
मां मुझे माफ कर देना।
महिलाओं के दो स्तनों के बीच से 
गुजरते राजमार्ग पर
भाग भाग कर एक बार
हांफ जाते हैं तो इच्छा होती है
मां की बूढ़ी परछाई में बैठ कर 
आराम करने की
तब ख्याल आता है कि
मां तो मर गई है।
मां प्रेमिका जितनी सुंदर नहीं होती।


                                                - वीरेंद्र बहादुर सिंह 



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