साहित्य चक्र

26 June 2024

जरा सी लापरवाही, पड़ जाती है बहुत ही भारी


प्रबुद्ध पाठकों के ध्याननार्थ बता देना चाहता हूँ कि स्व० भागीरथजी कानोड़िया की लिखी एक लोककथा जो कभी पहले पढ़ी थी, उसी को यहां जैसा याद आया,प्रस्तुत कर रहा हूँ हालाँकि  उन्होंने जो भी नामकरण उस लोककथा में लिखा होगा वह तो याद नहीं है लेकिन उस लोककथा का मूल भाव बिल्कुल याद है। बहुत पहले एक देश के नरेश के पास एक हंस था। नरेश का उससे बहुत लगाव था इसलिये वह उसका बहुत ही ध्यान रखता था और अपने सामने उसे नित्य प्रति मोती चुगवाता था। वह हंस को सांयकाल या तो स्वयं महल के ऊपर मुंडेर पर ले जाकर अन्यथा अपने विश्वस्त के साथ भेज उसे उड़ने के लिये छोड़ता था। हंस आस पास का एकाध चक्कर लगा वापस मुंडेर पर लौट आता था।




एक दिन जब हंस उड़ कर दीवानजी के छत पर जा कर बैठा और इधर उधर देख रहा था उसी समय उसको दीवानजी की पुत्रवधू ने पकड़ लिया क्योंकि दीवानजी की पुत्रवधू गर्भवती थी और उसने सुन रखा था कि यदि गर्भावस्था में हंस का मांस खाया जाय तो होने वाली सन्तान सब तरह से सर्वगुण सम्पन्न व भाग्यशाली होती है। उसके बाद उसने पूरी सावधानी बरतते हुये उसे स्वयं ही रसोईघर में ले जाकर पका कर भक्षण कर लिया जबकि वह यह अच्छी तरह से जानती थी कि यदि नरेश को पता चल जायेगा तो परिणाम विनाशकारी होगा। इसलिये उसने पूरे प्रकरण के समय  ही नहीं बल्कि बाद में भी उसने इस बात का पता किसी को भी लगने ही नहीं दिया ।

उधर जब वह हंस काफी देर के बाद भी लौटा नहीं तब नरेश ने उसके खोज में अपने आदमियों को खोज लाने का आदेश दिया। आखिर में जब उसको खोजकर लाने में विफलता सामने आयी तब नरेश बहुत विचलित हो गया। उसके बाद नरेश ने न केवल अपने गुप्तचरों को इस काम के लिये आदेश दिया बल्कि आनन फानन में घोषणा कर दी कि जो भी हंस की सूचना देगा उसे पुरस्कृत किया जायेगा ।

काफी दिन बीत जाने पर भी जब सफलता नहीं मिली तब नरेश बहुत ही उदास रहने लगा। इसी बीच एकान्त में गुप्तचरों ने नरेश के सामने वेश्याओं के बीच काम करने वाली एक कुटिल दलाली करनेवाली औरत को पेश किया और उसकी बात सुन लेने का नरेश से आग्रह किया। उस औरत ने  नरेश को आश्वस्त करते हुये कुछ रकम की याचना की तब नरेश ने रकम दिलाते समय इस कार्य के लिये समय-सीमा भी निश्चित कर दी।

उस औरत को पता था कि गर्भावस्था में हंस का मांस खाया जाता है इसलिये उसने सबसे पहले नगर में रहने वाले सम्पन्न घरों में  इस पर अनुसंधान किया तब पता चला कि दीवानजी की पुत्रवधू गर्भवती है और वह घर महल के नजदीक भी है। उसके बाद वह पूत्रवधू के पीहर वाली जगह पहूंच पूरे परिवार के बारे में काफी जानकारी हासिल की ।  जानकारी हासिल करने के दौरान यह बात पता चली कि उसकी अर्थात पुत्रवधू की  भुआ बहुत पहले ही किसी साधू के साथ घर से निकल गयी थी और उसको काफी प्रयास के बावजूद खोजा नहीं जा सका था। इतना पता होते ही वह तुरन्त एक योजना सोच लौट आयी और सफेद साड़ी में दीवानजी की पुत्रवधू से मिलती है और उसकी पीहर का कुशल मंगल बता, अपने को उसकी भुआ बता, कहा कि वह जब अचानक लौटी तब केवल एक बार उससे मिल लेने का सोच यहाँ आयी है।

तब दीवानजी की पुत्रवधू ने औपचारिकतावश उससे कुछ दिन तक उसके साथ रह लेने का निवेदन करती है जिसे वह सहर्ष स्वीकार कर लेती है। वहाँ रहने के दौरान वह उस पूत्रवधू की काफी सेवा सुश्रुषा कर उसका विश्वास जीत लेती है।और इसी विश्वास का लाभ लेते हुए, वह उसका टोह लेने के उद्देश्य से कहती है कि इस गर्भावस्था के समय यदि उसे हंस का मांस मिल जाय तो जो संतान होगी वह सब तरह से तेजस्वी होगी। फिर थोड़ी देर बाद वह कुटिल भुआ बनी औरत स्वयं ही इसकी कैसे व्यवस्था करूं.. इस तरह  बड़बड़ाती है ताकि पूत्रवधू भी सुन सके । फिर उससे कहती है कि मैं भाई से जाकर इस पर सलाह कर लेती हूँ ,  तभी अनचाहे ही पूत्रवधू ने अपने  हंस का मांस खाने का सारा तथ्य सहज भाव से बता दिया। 

उसके बाद उस तथाकथित भुआ ने उसे भयभीत करने के उद्देश्य से कहा इस हालात में तो तुम्हारे सिर पर हंस हत्या का पाप है। इसका असर आने वाली सन्तान पर न पड़े इसलिये प्रायश्चित कर लेना उचित रहेगा। इसके बाद पूत्रवधू से थोड़ा समय बाद स्वयं ही कहती है कि पोखर किनारे वाला  मन्दिर बिना पूजारी वाला है ।वहाँ मन्दिर में भगवान समक्ष  हंस हत्या की माफी माँग लेना क्योंकि भगवान भी जानते हैं कि प्रतिभाशाली सन्तान पाने वास्ते तुमने मजबूरी में ऐसा किया है। 

पूत्रवधू की स्वीकारोक्ति मिल जाने के बाद वह लुक-छिपकर नरेश को सारी बात बता देती है। लेकिन नरेश द्वारा प्रमाण माँगने पर वह उनसे अकेले ही मन्दिर के पीछे छुप कर स्वीकारोक्ति सुन लेने का आग्रह किया, जिसे नरेश ने स्वीकार कर लिया।

फिर निश्चित समय पर वह तथाकथित भुआ पूत्रवधू के साथ मन्दिर पहूँच  उसे पहले आँख बन्द कर ध्यान करने का कहती है। जैसे ही वह नेत्र  बन्द करती है वह बिना समय गँवाये  मन्दिर के पिछवाड़े  नरेश की उपस्थिति बावत आश्वस्त हो लौटती है। लेकिन जैसे ही पूत्रवधू आँख  खोलती है वह तथाकथित भुआ मन्दिर में प्रवेश कर रही होती है। उसके बाद उस तथाकथित भुआ ने उससे स्वीकारोक्ति के लिये कहा। तब पूत्रवधू शुरू करते हुये कहती है कि हंस का मांस खाने से कान्तिवान सन्तान मिलती है इसलिये... कह ही रही थी कि उस तथाकथित भुआ ने मन्दिर में रखे हुये नगाड़े की ओर देख कर कहा नगाड़ा नगाड़ा तुम इस माफी के गवाहीदार रहोगे।  

इस अप्रत्याशित प्रकरण ने  पूत्रवधू को  संशकित कर दिया । इसलिये वह तुरन्त एकदम चुप हो गयी। तब उस तथाकथित भुआ ने कहा बेटी फिर आगे बोलो तब उस पूत्रवधू ने कहा भुआ उसके बाद तो मेरी आंख खुल गयी और सपना सपना ही रह गया। इसके बाद तो उस कुटिल औरत की हालत  ऐसी हो गयी कि काटो तो खून नहीं।

शिक्षा: एक कहावत है जरा सी लापरवाही, पड़ जाती है बहुत ही भारी। इसलिये जब भी कोई अजनबी अपने को रिश्तेदार बताये तो तीन कोण से पुख्ता करने के पश्चात ही विश्वास करें अन्यथा जरा सी लापरवाही बहुत ही महंगी पड़ जाती है । 


                                                                     - गोवर्धन दास बिन्नानी "राजा बाबू"



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