साहित्य चक्र

13 July 2024

कविताः आषाढ़ के बादल



आषाढ़ के बादल आए। 
पूरे गगन काले-काले बादल छाए।

उमड़-घूमड़ कर,
बादल इधर-उधर घूमे।

कहीं थमें तो गरज-गरज,
बिजली चमके ध्वनि करें।
छम छम घनघोर वर्षा करें। 

बरसे पानी।
बीच-बीच में बिजली,
चमके चम-चम-चम।
बारिश करें छम-छम।

प्रेमी और प्रेमिका उर मिलन,
व्याकुल बादल उमड़े।

मिलन की प्रतीक्षा करें।
मयूर पंख फैला नृत्य करें।

पपीहा पीहू-पीहू करें।
दादुर टर्र-टर्र करें।

चातक पक्षी स्वाति बूंद, 
अपनी प्यास बुझाऍं।


                                                      - संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया 



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