सुकून के धागे कोई काट रहा जनाब
काँटों से जैसे कोई छांटता गुलाब
इज्ज़त के पुलिंदे ढह जाते भराभर
गिरे-पड़े बाशिंदे पर जब डोलती शराब
अंधेरे मे रहने की जिसको लग गयी है लत
दिन के उजाले नहीं दिखता आफताब
हवाओं का रुख कुछ बदला इस कदर
मुज़रिम चले सीना तान सज्जन ओडे नकाब
मरहम पे दवा छिड़कने आ रहे
ज़ख्मों पे जिन्होंने लगायी आग
बेताब था जो उड़ने को कभी
डाल पे परिंदा क्यों बैठा उदास
ये जिंदगी ख़ुदा की नेमत है यारों
इठलाती उम्मीदों का क्यों छोड़ते हो साथ
मेहनत के रंगों की रंगोली सजाओ
कामयाबी की फिर निकलेगी बारात
- उमा पाटनी 'अवनि'
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