साहित्य चक्र

13 July 2024

कविताः मानसून आया...



मानसून आया
धरा हर्षाई
पेड़ों ने श्रृंगार पाया
पहाड़ों पर रंगत छाई।

आकाश छुप गया
ओट बादलों की 
बिजुरी करे इशारा
बूंदों की बजी शहनाई।

भाव बन के पानी
बह रहा सर्वत्र अब तो
तालाब की शोभा
फिर से लौट आई।

ठहरेगा कितने दिन
ये पाहुना धरा का
चला जायेगा यहाँ से
क्या करके भरपाई।

नया पानी पाकर
नदियों ने रंग बदले
लगती थी बूढ़ी बूढ़ी
अब दिख रही तरुणाई।

झरने लगे हैं गिरने
नालों पर चंढ़ी खुमारी
दुबक कहीं जा बैठी
गर्मी जो थी हरजाई।
        
                                              - व्यग्र पाण्डे



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