साहित्य चक्र

21 July 2024

कविताः केवाईसी





बार - बार की,
के वाई सी से,
तंग हो गया हूं,
मैं किसान हूं! 

कभी बैंक में, 
के वाई सी,
कभी राशन में,
के वाई सी!

गैस में भी,
के वाई सी,
मांग रहे हैं,
ओ टी पी!

क्या करूं,
कहां चला जाऊं,
बिंदास खेत की,
रखवाली कर पाऊं!

खेत हमारे,
हरे भरे हों,
पूरा समय,
खेतों पर जाए!

पहले जैसे,
हम हो जाएं,
ईश्वर से हम,
यही मनाएं! 

हे भगवान,
इन नेताओं से,
हमें बचाएं,
के वाई सी बंद कराएं!

                                                 - डॉ. सतीश 'बब्बा'

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