साहित्य चक्र

13 July 2024

कविताः पेपर लीक

 

पेपर लीक कोई है करता 
खामियाजा कोई है भरता 
गरीब को तो मार दिया तूने
अमीर फिर भी नहीं है डरता 

हमारे तंत्र की रग रग में है भ्रष्टाचार
गरीब पर तो हो रहा है अत्याचार
पूरा साल जिसने कुछ नहीं पढ़ा
मेरिट में कैसे आया कुछ तो करी विचार

पेपर लीक की जड़ तक नहीं कोई जाता
संस्थान करोड़ों देकर पेपर को है खरीद लाता
संस्थानों में पढ़ने वाले मेरिट में हैं आ जाते
और गरीब का बच्चा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता

संस्थानों की गर्दन पर जब लटकेगी तलवार
एक ही झटके में सब कुछ आ जायेगा बाहर
पिछले कितने सालों से चल रहा था यह धंधा
यह सब जनता के सामने हो जाएगा उजागर

भ्रष्टाचार मुक्त शाशन बार बार कहती है सरकार
फिर पेपर लीक कैसे हो जाता हर बार
पैसे का जो यह चल रहा है अजब खेल
गरीब आदमी की मेहनत पैसों के आगे जाती है हार

                                                                           - रवींद्र कुमार शर्मा


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