आजकल अम्बानी परिवार चर्चा में है। लम्बा विवाह समारोह और अमीरी का जरूरत से अधिक दिखावा अब उनकी अलग तरह की इमेज बना रहा है। बड़े स्तर पर की गई पी आर अब शायद खुद अम्बानी परिवार को भी अजीब लगने लगी होगी। लेकिन कार्यक्रम जो तय हैं वे तो करने ही हैं आखिर कार। इस बीच जो एक तत्व मुखर होकर सामने आया है वह है असुरक्षा का बोध है। भीतर असुरक्षा का बोध जब मुखर होने लगता है तो इंसान दिखावा अधिक करता है। वैसे भी शिखर जैसी असुरक्षित जगह कोई और होती भी नही।
अम्बानी परिवार धीरू भाई अम्बानी यानी अपने मुखिया को रोल मॉडल मानता है ।धीरू भाई पर अनेक पुस्तकें लिखी गईं। उन्हें रोल मॉडल कहा गया की उन्होंने बेहद गरीबी में से निकल कर एक बड़ी कंपनी खड़ी की। गरीबी और अमीरी के बीच झूलते अम्बानी परिवार के सदस्य इसी उहापोह में पले बढ़े हैं। दादा बेहद गरीब थे। सिर्फ 50 ही तो साल की कहानी है जब दादा बहुत गरीब थे। उसके बाद जिस तरह से वे अमीर बने वह दुनिया जानती है। तिकड़म में धीरू भाई से बड़ा आजतक कोई नही हुआ। पैसा खर्च करने का उनका साहस और निर्णय लेने की उनकी त्वरा सराही गई। निर्णय नैतिक था ईमानदारी पर था सिस्टम के अनुरूप था इसकी बहस बेमानी करार दी गई।
जब अम्बानी परिवार जड़े जमा रहा था तभी अनिल अंबानी नाम का शख्श चर्चा में आने लगा। उन्हें टीना मुनीम से ब्याह करना था। परिवार ने विरोध किया लेकिन अंततोगत्वा टीना मुनीम और अनिल अंबानी की शादी हो गई। कहते हैं कि टीना मुनीम को पारम्परिक परिवार कभी स्वीकार नही कर पाया। धीरू भाई के जाने के बाद 2006 में अम्बानी परिवार का बिजनेस दो हिस्सों में बंट गया। जैसे महाभारत के युद्ध की दोषी द्रोपदी करार दी गई वैसे ही बिजनेस के दो फाड़ होने की दोषी टीना करार दी गई। यह भी संभव है कि जब आपको किसी की उपस्थिति स्वीकार नही तो उनका भी तो कोई आत्मसम्मान होगा न।
टीना अम्बानी मुकेश अम्बानी के हर समारोह में शिरकत करती हैं। अनिल भी होते हैं। लेकिन मुकेश अम्बानी के परिवार के साथ उनके चित्र नही होते। अनिल अंबानी जब भी दिक्कत में आये, मुकेश अम्बानी ने अनिल के साथ बिजनेस डील की औऱ तमाम करार तोड़कर अनिल के सारे बिजनेस फील्ड में घुस गए। बंटवारे में ये करार हुआ था कि मुकेश अनिल के किसी एरिया में बिजनेस नहीं करेंगे और अनिल मुकेश के किसी फील्ड में बिजनेस नही करेंगे। टेलीकॉम अनिल को मिला था लेकिन JIO फ़ोन आज मुकेश की बड़ी कंपनी है ।मजबूरी में जैसे-जैसे अनिल कमजोर होते गए मुकेश उनके बिजनेस लेते गए।
अमीरी और गरीबी का यह चक्र अम्बानी परिवार में फिर से चलने लगा। एक भाई उत्तरोत्तर गरीब होता गया, एक भाई उत्तरोत्तर अमीर होता गया। और इसका पूरा प्रभाव बच्चों के व्यक्तित्व पर पड़ा। उनका होना बिजनेस के लिए है। उनका एक-एक कदम बिजनेस के लिये है। उनका एक-एक सांस बिजनेस के लिए है। वे पढ़े और बिजनेस में घुस गए। उनकी शादियां बिजनेस मैरिज हैं। वे भीतर से इतने आतंकित हूए कि अपने मन की की तो अनिल चाचा जैसा परिणाम देखना पड़ सकता है। अनिल चाचा उनके लिए एक नकारात्मक उदाहरण हैं जो उन्हें बिजनेस में लगे रहने की प्रेरणा देता है। जो उन्हें संस्कारी बने रहने की प्रेरणा देता है। जो उन्हें यह सीख देता है कि माता पिता जो कहेंगे,हम वही करेंगे।और माता पिता भी खुद इतने संभल कर चल रहे हैं कि अपने जीते जी बच्चों मेंबिजनेस का बंटवारा कर दिया कि ये बेटे का ये बेटी का ये छोटे का।
इस तमाम उहापोह में अम्बानी परिवार ने सिर्फ बिजनेस जीया, बिजनेस ओढ़ा, बिजनेस खाया, बिजनेस बिछाया। स्वाभाविक है कि जीवन में नीरसता आएगी ही। पैसा है, सब सुविधा है लेकिन जीवन में आकंठ नीरसता है। पैसे खर्च करके देख लिया उन्होंने। महंगी घड़ियां गाड़िया हार सब लेकर देख लिए। लेकिन नीरसता ज्यों की त्यों है। इस लम्बी नीरसता को तोड़ने के लिए संभव है लंबे समारोह रचे गए।
दूसरा पहलू यह है कि अनन्त पूरी तरह स्वस्थ नही है। उनकी बीमारी उन्हें परेशान करती है। बड़े परिवार के हिसाब से उसका वैसा आत्मविश्वास नही बन सका कि वह हर चीज को आकाश अम्बानी की तरह या अपने पिता मुकेश अम्बानी की तरह हैंडल कर सके। उसे पूरी दुनिया से परिचित करवाया गया। बड़े बड़े सेलेब्रिटीज़, बिजनेस लॉबी और नेताओं से मिलवाया गया ताकि वह कही भी बात करे तो पूरी दुनिया उसे परिचित लगे कि अरे इसे तो मैं जानता हूँ। उसके लिये पूरी पी आर टीम खड़ी की गई जो उसके व्यक्तित्व को स्थापित करे। यह टोटल बिजनेस डील है। विवाह के बहाने खर्च करके भी यदि भोले भाले बच्चे की समाज मे स्वीकृति होती है, बिजनेस लॉबी में उसे गभीरता से लिया जा सके तो कुछ हजार करोड़ का खर्च मुकेश नीता के लिये मायने नही रखता।
विवाह के सामाजिक मायने भी हैं। सामाजिक बहस के लिये इस विवाह में बड़ा स्पेस है, पहला तो यही था कि समाज मे कोई बच्चा बेशक वह अमीर का हो या गरीब का यदि वह स्वस्थ नही तो उसका विवाह जरूरी ही क्यो होता है। अपने बच्चे के जीवन की रिक्तता को भरने के लिए हम किसी दूसरे के जीवन के साथ खेल रहे होते हैं। दूसरा समाजिक मुद्दा यह भी है कि बड़े लोग कुछ अच्छे प्रतिमान स्थापित कर सकते थे जो अब उनकी जिम्मेदारी की सूची में नही रहे।शिखर पर बैठे मनुष्य की प्राथमिकता शिखर है। नीचे देखने से उसे डर लगने लगे तो समझिए वहां नीचे के लोगों के लिये कुछ नहीं बचा है।
बहरहाल, कहते हैं अमीरी पुरानी हो तो नचाती नही है टिकाती है। नई अमीरी के अपने झंझावात हैं। झंझावातों का कॉकटेल है ये लंबा विवाह समारोह।
- वीरेंद्र भाटिया
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