साहित्य चक्र

03 June 2022

कविताः कल किसी का नहीं आज हमारा है



कल की छोड़ो आज की बात करो
कल पीछे छूट गया आज नई शुरुआत करो
जिंदगी को जो अकेला छोड़ दिया था तुमने
उस जिंदगी से एक बार फिर मुलाकात करो

समय के साथ तुम भी बदलो 
पीछे मत रहो डट कर उसके साथ चलो
बड़े गहरे घावों का मरहम है इसके पास
समय के साथ तुम भी फूलो फलो

कल क्या होगा यह किसको पता है
कल की फिक्र में आज को यूं मत बर्बाद करो
क्यों कैद में डाल रहे हो अपने जीवन को
बन्धनों से खुद को तुम अज़ाद करो

जो बीत गया वह बीत गया
उस पर चिंतन इक बार करो
क्या खोया क्या पाया तुमने
इस पर तुम थोड़ा विचार करो

वक्त के थपेडों ने क्या से क्या बना दिया
समय से पहले ही पर्दा गिरा दिया
थर थर कांपती थी जिनसे धरती
उनको भी इस मिट्टी में मिला दिया

कल किसी का नहीं आज हमारा है
जो नहीं मिला उसके पछतावे में क्यों रोएं
जो भी अपने पास है उसी में ही खुश रहें
खुशी के जो कुछ पल हैं उनको भी क्यों खोएं


                                             लेखक- रवींद्र कुमार शर्मा


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