हिम्मत है तो आईने से नजर मिला तो सही,
कहीं एक भय छुपा बैठा है, बाहर ला तो सही।
कभी किसी के हृदय को दुखाकर, हंसा बहुत होगा,
किसी रोते हुए इंसान को तू हंसा तो सही।
उम्र सारी गुजारता रहा है तू धन कमाने में,
समय हो मुश्किल किसी का तो, तू काम आ तो सही।
बड़े गुरुर में बैठा है, रूठकर अपनों से,
आज अकेला है तो गुरुर कैसा ? ये बता तो सही।
नहीं होता कोई सम्पूर्ण कभी अपने में ,कमी तो होती है,
कमी के साथ रिश्तों को, तू निभा तो सही।
ऐसी दौलत भी क्या ? इंसान को जो मगरुर करे ,
किसी गरीब के घर का चूल्हा तू जला तो सही।
टूटते देखा है क्या किसी ने उम्मीद को आइने की तरह ,
जिन्होंने खोएं हैं अपने, उनसे मिलकर आ तो सही।
जिंदगी मिलती है एक बार, फिर शिकवा कैसा ?
बहारें आयेंगी जरूर, तू मुस्कुरा तो सही।
लेखिका- मंजू सागर
अम्बेडकर नगर, गाजियाबाद
उत्तरप्रदेश
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