साहित्य चक्र

23 June 2022

हमारा देश बहुत अजीब है।


एक एमबीए किया हुआ व्यक्ति चाय की ठेली खोलकर चाय बेचता है। वह धीरे धीरे करोड़ों कमा लेता है तो हमारा समाज उसे बहुत अच्छा बताता है। अगर किसी घर का एक लड़का 12वीं पास करने के बाद चाय की ठेली या किसी और चीज की ठेली लगाना चाहता है तो उसके घर वाले और हमारे समाज के लोग उसे तिरस्कार भरी नजरों से देखना शुरू कर देते है। न जाने उसे क्या क्या बुरा भला कहेंगे ? पढ़ने का मन नहीं था तो चाय की ठेली खोल ली इत्यादि। 




अब मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि एक व्यक्ति ने एमबीए किया उसके बाद उसने चाय की दुकान खोल कर उसे उसने अपने बिजनेस में बदल दिया तो उस व्यक्ति का एमबीए करने से क्या फायदा हुआ ? अगर एमबीए करने के बाद कोई व्यक्ति अपनी योग्यता से कम वाला काम करता है तो फिर उसे हमारा समाज क्यों स्वीकार नहीं करता है ? क्या हमारा समाज सिर्फ पैसा देखता है ? आजकल पैसा कमाने के क‌ई गलत तरीके है। क्या वह तरीके समाज की नजरों में सही है ? अगर वह तरीके समाज की नजरों में गलत है तो फिर यह तरीका कैसे सही हुआ कि एक व्यक्ति एमबीए करने के बाद चाय बेचता है ? क्या आप इसे उस व्यक्ति का फेलियर नहीं मानते हैं ? 

जब हम किसी चीज की तैयारी करते हैं तो हमें अपना लक्ष्य पता होता है। एमबीए करने के बाद चाय बेचना कितना उचित है ? अगर उसे चाय ही बेचनी थी तो एमबीए करने से पहले भी तो बेच सकता था और उसके स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को एमबीए करने का मौका मिलता। क्या यह गलत नहीं है ? अगर यह गलत है तो फिर आप लोग उस एमबीए चाय वाले से इतने प्रभावित क्यों हो ? सोचो! क्या उसने एमबीए चाय बेचने के लिए की होगी ? उसने कभी भी चाय बेचने के लिए एमबीए नहीं की होगी क्योंकि चाय बेचने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती है। 

आप खुद अपने आसपास के चाय बेचने वालों से पूछिए उनकी क्या डिग्री है ? शायद ही कोई 10वीं या 12वीं पास होगा। हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था कितनी लचर हो गई है यह सोचने वाली बात है। कल्पना कीजिए एमबीए करने के बाद भी एक युवा को उसके मन मुताबिक रोजगार नहीं मिल पा रहा है। हम सभी को अपने अजीबो-गरीब विचारों से बाहर आना होगा। और हर उस व्यक्ति की मेहनत और काम को सराहना होगा जो दिन-रात कड़ी मेहनत करता है। काम के पेशे में उच्च नीच के भेद को खत्म करना होगा क्योंकि आज हम आधुनिक युग में आधुनिक भारत की कल्पना कर रहे हैं। आधुनिक भारत तभी संभव है जब हम मेहनत करने वालों को एक समान दृष्टि से देखेंगे। 

हम यह नहीं कहते कि एमबीए चाय वाले ने अपना बिजनेस इसलिए बेहतर बना लिया क्योंकि उसने एमबी किया था। उसकी कहानी को अगर आप जानने का प्रयास करेंगे तो आपको मालूम पड़ेगा कि वह व्यक्ति ने अपना यह व्यापार कैसे शुरू किया ? हां आपकी जानकारी के लिए बता दूं उस व्यक्ति ने एमबीए नहीं किया है। बल्कि एमबीए में एडमिशन लेने के बाद वह एमबी छोड़ कर आ गया। उसने कई जगह प्राइवेट नौकरी की और सरकारी नौकरियों की तैयारी की, मगर वह सरकारी नौकरी का एग्जाम निकालने में असफल रहा। हां एमबीए चाय वाला लाखों करोड़ों में एक ही व्यक्ति बन सकता है। हमारे यहां के मां बाप अपने बच्चे को कपड़े तक नहीं धोने देते है‌। चाय, सब्जी, रेस्टोरेंट्स, ढाबा खुला तो दूर की बात है। एमबीए चाय वाले की तारीफ आप और हम सभी इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वह एक सरकारी नौकरी करने वाले से कई गुना आगे पहुंच चुका है। उसी के कई साथी आज भी मुखर्जी नगर जैसे शहरों में ठोकर खा रहे होंगे। हमें एमबी चाय वाले की तारीफ तो करनी चाहिए, मगर अपने बच्चों को भी बिजनेस इत्यादि के लिए भी प्रेरित करना चाहिए और अपने बच्चों के ऊपर जबरदस्ती किसी चीज को नहीं थोपना चाहिए। 

                                    - दीपक कोहली

2 comments:

  1. is ajeeb desh ke karan iske ajeeb soch wale log hain

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