साहित्य चक्र

09 June 2022

उफ्फ! ये गर्मी मार ही डालेगी



म‌ई से जुलाई तक में भारत के सभी राज्य में लगभग सबसे अधिक गर्मी पड़ती है। अब सवाल उठता है कि गर्मी हर साल क्यों बढ़ती जा रही है ? गर्मी से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए ? क्या एसी, कूलर, पंखा चला लेने से ही गर्मी से राहत मिल पाएगी या फिर हम भारतीयों को हर साल बढ़ती गर्मी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चिंतन करने की जरूरत है ?‌ कही विकास के नाम पर हम अपने देश का विनाश तो नहीं कर रहे है ? संपूर्ण विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां लगभग हर प्रकार की खेती हो सकती हैं। विश्व में सबसे अच्छा मौसम भारत में रहता है। भारत में ना अधिक गर्मी पड़ती है, ना ही अधिक सर्दी पड़ती है। वर्तमान में हर साल गर्मी बढ़ती जा रही है। जिसके कारण सामान्यतः प्रदूषण का बढ़ना, विकास ‌कार्य, आधुनिकता के चक्कर में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना इत्यादि हैं।




अगर हम व्यक्तिगत तौर पर सोचे कि हमें गर्मी से कैसे राहत मिलेगी तो सबसे पहले हमें अपना टाइम टेबल बदलने की जरूरत होगी। सुबह और शाम में गर्मी कम पड़ती है। इसलिए सुबह और शाम के वक्त हम बाहर का काम आसानी से कर सकते है। अगर आपको ऑफिस जाना है तो साथ में पानी की बोतल रखना चाहिए। आप ऑफिस जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं तो आप को ध्यान देना चाहिए कि आपके ऑफिस जाने के लिए मेट्रो सही रहेगी या फिर कैब ? आपको ऑफिस जाने के लिए सिर्फ ऑटो, रिक्शा का इस्तेमाल करना पड़ता है तो उस दौरान आपको अपने चेहरे को सूती कपड़े से ढकने की जरूरत है और इसके अलावा आपको छाते का इस्तेमाल करना चाहिए। दफ्तर में नियमित तौर पर पानी पीते रहना चाहिए। ‌आपको दोपहर का खाना या लंच साधा करना चाहिए जैसे लस्सी, रोटी, सब्जी, चावल आदि और ज्यादा तेल वाला खाना खाने से बचना चाहिए। हमेशा एसी के नीचे नहीं बैठा रहना चाहिए।‌ सुबह और शाम के समय पार्क में टहलना चाहिए। अगर संभव हो सके तो हर दूसरे दिन जूस पीना चाहिए या फिर रोज ग्लूकोज पी सकते है। आपको जूस और ग्लूकोज अच्छा नहीं लगता है तो आप नींबू पानी का सेवन भी कर सकते है। कम से कम 2 बार स्नान करना चाहिए और स्नान के दौरान ध्यान या मेडिटेशन कर सकते है। 

अगर हम आए दिन बढ़ती गर्मी से राष्ट्रीय स्तर पर राहत की बात करते हैैं, तो हमें अपने देश के पर्यावरण पर ध्यान देने की जरूरत है। हम विकास के नाम पर अपने देश के पर्यावरण का नाश कर रहे हैं। गांव-गांव में हम सड़क पहुंचा रहे हैं। कई राज्य ऐसे हैं, जो पहाड़ी क्षेत्रों में है। वहां हम गांव-गांव में सड़क पहुंचाने के लिए कई हजार पेड़ों और पहाड़ियों को काट रहे हैं। क्या हमारे पास सड़क के अलावा कोई और योजना नहीं है गांव को विकसित करने और बनाने के लिए ? हम सभी सुनते आ रहे हैं कि असली भारत गांवों में बसता है। सिर्फ एक मामूली सी सड़क के लिए अगर हम अपने गांव के पर्यावरण और प्रकृति से खेल रहे हैं तो यह हमारे देश के लिए कितना उचित है ? जिस सड़क के बदले हम हजारों पेड़ काट देते हैं क्या उन पेड़ों के बदले हम नए पेड़ लगाते हैं ? आज वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की बात की जा रही है। विश्व के शीर्ष-20 प्रदूषण वाले शहरों में भारत के सबसे अधिक शहर शामिल है।‌ क्या यह भारत के लिए शर्म की बात नहीं है ? हमारे राजनेता और शासन प्रशासन में बैठे अधिकारी लोग सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में क्यों सोचते हैं ? बताइए कितने अधिकारियों और राजनेताओं ने अपने अपने क्षेत्र में वृक्षारोपण करवाया और वृक्षारोपण करवाया तो कितने पौधे पेड़ बने क्या आपके पास कोई आंकड़ा है ? 

भारत जितना बड़ा देश है, इतने बड़े देश को हर चीज और हर क्षेत्र को एक साथ लेकर चलने की जरूरत होती है। अगर हम सोचेंगे कि सिर्फ आईटी सेक्टर को या आधुनिकता के चक्कर में हम अपने देश की नदियों को और जंगलों को प्रदूषित करते रहे तो यह हमारा मूर्खतापूर्ण कदम होगा। हमारी सरकार ने देश को चलाने के लिए कई मंत्रालय बनाए हैं। पर्यावरण मंत्रालय जिनमें से एक है। क्या आप बता सकते हैं पर्यावरण मंत्रालय क्या करता है ? हमारे देश में पर्यावरण मंत्रालय सिर्फ विज्ञापन बनाने और चलाने तक ही सीमित रहता है। क्या पर्यावरण मंत्रालय का यह काम नहीं है कि वह हर राज्य में जिला स्तर पर कार्य करें ? हर साल उत्तराखंड सहित कई राज्यों के जंगलों में आग लग जाती है और हमारा पर्यावरण मंत्रालय कुंभकरण की नींद में सोया रहता है। एक-दो साल पहले जब कोरोना महामारी ने दस्तक दी तो समस्त भारतवर्ष में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। नदियों के किनारे लाशों का अंबार लगा था। उस वक्त हमारा पर्यावरण मंत्रालय नदी संरक्षण के नाम पर घंटी, थाली और शंख बजा रहा था। इसके अलावा धार्मिक आस्था और मोक्ष के नाम पर गंगा नदी में हर साल सैंकड़ों लाशें फेंक दी जाती है‌ और पूजा-पाठ के नाम पर नदियों में प्रतिदिन सैकड़ों की तादात में जलते दिए, फूल मालाएं और इत्यादि चीजें फेंकी जाती है। आखिर आस्था के नाम पर हम अपने देश की नदियों और जंगलों को प्रदूषित क्यों कर रहे हैं ?

वर्तमान से अगर हम सीख नहीं लेते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब भारत के कई शहरों में मई-जून-जुलाई के महीने में रहना दुश्वार हो जाएगा। जिस तेजी से हमारे शहरों में एसी, कूलर का चलन चल रहा है। उस तेजी से भारत में बहुत ही जल्द पर्यावरण विस्फोट होने जा रहा है। हमें वक्त रहते अपने देश के पर्यावरण के बारे में गंभीर और ठोस कदम उठाने की जरूरत है। आइए आप और हम अपने घर से शुरुआत करते हैं। कम से कम पॉलीथिन का इस्तेमाल करते हैं। बिजली, पानी का इस्तेमाल जरूरत के अनुसार करते हैं और हर वर्ष 2 पौधे लगाकर उन्हें पेड़ बनाते हैं। 


लेखक- दीपक कोहली


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