गम के ये पहाड़ से दिन
ऐ जिंदगी तू कब तक दिखायेगी
मैं रंगूगा नहीं तेरे रंग में
मैं जिऊंगा उसी ढंग में
जैसा बनाया परमेश्वर ने मुझे...
मैं एक समस्या सुलझाता हूँ
तू सैकड़ों लाकर खड़ी कर देती है मेरे सामने
पर तू इतनी सी बात मेरी सुनले
मैं टूटूंगा नहीं /
मैं झुकूंगा नहीं /
मैं रूकूंगा नहीं /
मैं डरूंगा नहीं |
जैसे खिलता कमल कीचड़ में
जैसे रात के बाद होता है सवेरा
ठीक वैसे ही
तू गायेगी मधुर गीत
बंद होगा तेरा रुदन
और महक उठेगा मेरा उजड़ा चमन...
मैं दूंगा तेरा हर इम्तहान
ऐ जिंदगी
तू बेशक रुठ जाये मुझसे
पर मैं न कभी रुठूंगा तुझसे |
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
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