आज फिर एक बुद्धा की तलाश है !
ये नए युग का परावर्तन तो नहीं ,
कि झूठ भी यथार्थ बन जाता है ,
नालंदा के ज्ञानद प्रांगण में ,
आज अज्ञानी भी ज्ञानी का पद पा जाता है।
सच को सच कहने के लिए ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
ये महाबोधि की शिराओं में ,
कौन सी गरम हवा बहने लगी है ,
जो कभी सभ्यता रचने की बातें कहती थी ,
आज गोधरा के साथ उसकी भी लाश बहने लगी है।
जिजीविषा की हद जानने के लिए ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
कौन नरेश है कौशल का अब ,
जो प्रजा के लिए रोता है ,
बाण लगे शब्दों का भी,
तो अपने रक्त से उसे धोता है।
ऐसे राज्य की कल्पना के लिए ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
ज्ञान दान दीक्षा की झोली खाली ही रह जाती है ,
क्यों इस व्यथा पे भी ये वसुंधरा चुप रह जाती है ?
जो ज्योति हुई प्रज्वलित यहाँ युगों पहले,
आज वो अन्धकार से क्यों डर जाती है ?
वही चिर ज्योति पाने को ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
ये नदी नालों में कुम्हलाए पलाश नहीं,
ये दम तोड़ती इच्छाओं की कतार है ,
जो पौरुष मृत्यु को भी जीत लाता था,
आज वही वीभत्स घटनाओं का क्यों आधार है ?
शक्ति की परिभाषा समझने को ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
ये शरीर नहीं शाश्वत ,ना ही ये प्राण शाश्वत है ,
इस दुर्बोध संसार में बस ज्ञान शाश्वत है ,
जीवन की सफलता इसको जीने में है ,
बस यही एक सत्य शाश्वत है।
जीवन का सारांश समझने के लिए,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।
सलिल सरोज
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