साहित्य चक्र

30 November 2019

आज फिर एक बुद्धा की तलाश है !



आज फिर एक बुद्धा की तलाश है !
ये नए युग का परावर्तन तो नहीं ,
कि  झूठ भी यथार्थ बन जाता है ,
नालंदा के ज्ञानद प्रांगण में ,
आज अज्ञानी भी ज्ञानी  का पद पा जाता है।

सच को सच कहने के लिए ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।

ये महाबोधि की शिराओं में ,
कौन सी गरम हवा बहने लगी है ,
जो कभी सभ्यता रचने की बातें कहती थी ,
आज गोधरा के साथ उसकी भी लाश बहने लगी है।

जिजीविषा की हद जानने के लिए ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।

कौन नरेश है कौशल का अब ,
जो प्रजा के लिए रोता है ,
बाण लगे शब्दों का भी,
तो अपने रक्त से उसे धोता है।

ऐसे राज्य की कल्पना के लिए ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।  

ज्ञान दान दीक्षा की झोली खाली ही  रह जाती है ,
क्यों इस व्यथा पे भी ये वसुंधरा चुप रह जाती है ?

जो ज्योति हुई प्रज्वलित यहाँ युगों पहले,
आज वो अन्धकार से क्यों डर  जाती है ?

वही चिर ज्योति पाने को ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।

ये नदी नालों में कुम्हलाए पलाश नहीं,
ये दम  तोड़ती इच्छाओं  की कतार है ,
जो पौरुष मृत्यु को भी जीत लाता  था,
आज वही वीभत्स घटनाओं का क्यों आधार है ?

 शक्ति की परिभाषा समझने को ,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।

ये शरीर नहीं शाश्वत ,ना  ही ये प्राण शाश्वत  है ,
इस दुर्बोध  संसार में बस ज्ञान शाश्वत है ,
जीवन की सफलता इसको जीने में है ,
बस यही एक सत्य शाश्वत है।

जीवन का सारांश समझने के लिए,
आज फिर एक बुद्धा की तलाश है।

                                             सलिल सरोज 


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