साहित्य चक्र

24 November 2019

युवाओं की वेदना

आज के युवाओं की एक वेदना

"चलते हैं हम 'आज' भुलाकर, घोंट गला अरमानों का..
'कल' बेहतर करने में कितने ख़्वाब जलाने पड़ते हैं..!!

सपनों के सौदे होते हैं दुनिया की बाजारी में..
दाग लगा देती है दुनिया बरसों की खुद्दारी में..
छूने भर से ढ़ह जाए जो ऐसे रेत घरौंदों को..
कितने क्रूर थपेड़े दिल पर अक्सर खाने पड़ते हैं..!!
कल' बेहतर करने में...............................!!१!!

औंधे बल जब गिरे हौसले, असफलता के छालों से..
नजर छिपाए फिरते हैं वो हो बेहाल सवालों से..
दुनिया वाले क्या सोचेंगे क्या उनको उत्तर दूंगा..
यही सोचकर हँस कर सारे अश्क़ छुपाने पड़ते हैं..!!
कल' बेहतर करने में...............................!!२!!

थकन पाँव की नजर गड़ाए रहती है जब ताजों पर..
भूख सिसकियां लेती फिरती दफ्तर के दरवाजों पर..
और महज अर्जुन की खातिर दुनिया की खुदगर्जी में,
कितने एकलव्यों को अंगूठे कटवाने पड़ते हैं..!!
कल' बेहतर करने में...............................!!३!!

                                               ✍️ कुमार आशू


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