मैया व लल्ला
"मेरी मुस्कानों के सृजनहार,
तुझपर वारूं लाड दुलार।
मुझसे जन्में तुम मैं पूर्ण हुई,
युगों की तपस्या परिपूर्ण हुई।
नव अंकुर के नव पल्लव हो,
हर्ष का अनादि समन्दर हो।
विकल दृष्टि तुम पर जाती है,
बरबस मुस्कानें खिंच जाती है।
शूल तुम्हारे पांव मेरे हों,
छांव तुम्हारी,धूपो के गाँव मेरे हों।
छुअन तुम्हारी चंद्र किरण सी,
अनुभूति तुम्हारी मस्त पवन सी।
वात्सल्य मूर्ति बनकर आए हो,
स्नेह घटा बनकर छाए हो।
स्नेहिल अंक के राजकुमार,
अटल रहे यह लाड दुलार।
मां तुमने होना बतलाया,
तुमसे मैनें नवजीवन पाया।
चिर अमिट रहे मनुहार सदा,
तात-मात का प्यार सदा।
अंजलि ओझा
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