"मंजिल साफ"
बात मेरी मान
न तकरीरें कर
नजर थाम
तस्वीरों पर
रोज नए दौड़
भेड़चाल सी दुनिया
बदलेगी
तकदीरें मगर
ठान ले तो
क्या मुश्किल
चाँद छू आया
इंसान
ब्लैक होल
नए छुद्रक
क्या क्या
देखा
इंसान
बारी है
अब तुम्हारी
चश्मा साफ़ कर
नजरिया भी
मंजिल साफ़ सीखेगी
एकदम से.....
प्रतीक प्रभाकर
No comments:
Post a Comment