साहित्य चक्र

26 October 2019

" माटी के दीप से सदा लीजे प्रेरणा "


  

दीपावली त्यौहार ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व को एक प्यारा-सा संदेश भी देती है, दीपावली ही एकमात्र ऐसा पर्व है, जो दीपों के बिना शून्य है, हमारे घरों के प्रत्येक कोने, दीवार और छतों पर जब तक दीये का प्रकाश नहीं छा जाता, तब तक ये पर्व फीका-फीका सा लगता है, एक ऐसा दीया जो सदैव मौन बनकर भी अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देता है, अपने अंतिम दौर तक दीया अंधकार से लड़ता रहता है।




             आखिर लड़े भी क्यों ना ईश्वर ने जो ताकत मनुष्य को विपत्तियों और संघर्षों से लड़ने की प्रदान की है, वही ताकत ईश्वर ने निर्जीवता को भी प्रदान की है। हमारे भीतर भी सदा ऐसा ही दीया जलना चाहिए, लेकिन साथ में प्रेम, समर्पण और आत्मविश्वास सदा प्रज्वलित रहना चाहिए। एक दीया इंसान को इंसानियत, अधर्म को धर्म, मूर्ख को बुद्धिमान बनने की प्रेरणा प्रदान करता है ।

               हम भी माटी के ही पुतले है, और दीया भी माटी से ही बना है, जितना हम अपने अंतर्मन की ज्योति के प्रकाश को फैलाएंगे, वह उतना ही पराक्रमी बनता है, ठीक उसी प्रकार दीया भी अपनी बाती रूपी ज्योति को जाग्रत करके अपने प्रकाश को इतना प्रगाढ़ बना देता है, कि वह अंत समय तक अपनी जीत तय कर लेता है।

              अहं का नाश करके मानव को सदैव सौम्य,सरल, धैर्यवान होकर बुद्धिमानी का परिचय देना चाहिए। यदि भगवान की पुजा करे तो भी दीये का महत्व अपनी महत्ता को दर्शाता है, इसलिए सदैव दीया बने, और अपने जीवन में प्रकाश की ज्योत सदैव जलाकर रखें, ताकि जीवन में कठिन से कठिन डगर भी आसान हो जाए।

  इसी के साथ सभी देशवासियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।


                                                    - सुनील पोरवाल "शेलु"


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