साहित्य चक्र

28 October 2019

दीपोत्सव



किसी जगह पर दीप जले अरु कहीं अँधेरी रातें हों ।
नहीं  दिवाली  पूर्ण बनेगी, अगर भेद की  बातें  हों ।।

ऐसे  व्यंजन  नहीं  चाहिए, हक  हो  जिसमें औरों का ।
ऐसी  नीति महानाशक  है, नाश करे  जो  गैरों   का ।।

हम  तो  पंचशील  अनुयायी, सबके  सुख में जीते हैं ।
अगर प्रेम  से मिले जहर भी, हँस करके ही  पीेते  हैं ।।

चूल्हा  जले पड़ोसी  के  घर, तब हम  मोद  मनाते हैं ।
श्मशान तक  कंधा  देकर,  अन्तिम  साथ निभाते हैं ।।

किन्तु चोट हो स्वाभिमान पर,जिन्दा कभी ना छोड़ेंगे ।
दीप  जलाकर किया  उजाला, राख बनाकर छोड़ेंगे ।।

दीपोत्सव का मतलब तो यह,सबके घर खुशहाली हो ।
दीन दुखी निर्बल  के घर भी, भूख मिटाती थाली हो ।।

प्रथम दीप के प्रथम रश्मि की,कसम सभी जन खाएँगे।
दीप  जलाकर  सबके  घर में, अपना  दीप जलायेंगे ।।

घर घर में जयकारा गूँजे, कण कण में खुशहाली हो ।
सच्चे अर्थों  में उस दिन  ही, दीपक पर्व  दिवाली हो ।।

                                                                      डॉ अवधेश कुमार अवध


No comments:

Post a Comment