साहित्य चक्र

06 October 2019

माता जग की दुलारी


शक्ति की तुम मूल तत्व हो तुम हो दुर्गे जननी हमारी,
तीनों देवों से सेवित हो तुम हो माता जग की दुलारी !

अस्थिर मन को तुम शैल की भाँति स्थिर करने आती हो !
तब तुम माँ प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री कहलाती हो !!




ब्रह्मचर्य के अर्थ से तुम अनंत में चलना सिखाती हो !
भौतिकता के भार को हरने ब्रह्मचारिणी बन आती हो !!

चन्द्र कलाओं जैसी जब बुद्धि विस्मित होती है !
सतर्कता की घण्ट ध्वनि ले चन्द्रघण्टा बन आती हो !!

सीताफल समान माँ सूक्ष्म से विशालता का बोध कराती हो !
सब जीवों में कुष्मांडा तुम प्राण रूप में समाती हो !!

सबके अंदर माँ तुम कौशल, करूणा, साहस को दर्शाती हो !
बनकर स्कन्दमाता तुम क्रियाशीलता और ज्ञान की धारा बहाती हो !!

देवों ने जब क्रोध कीया तो क्रोधित मुद्रा में अवतीर्ण होती हो !
अन्याय और अज्ञानता को मीटाकर माँ कत्यायनी कहलाती हो !!

काल दर्शाता है ज्ञान को रात्रि से विरक्कतता दर्शाती हो !
बिन विश्राम दिप्तमान हो कैसे विश्रामारूप कालरात्रि बन जाती हो !!

जो जीवन में अमृत स्वरूप है वह विवेक का दान करती हो !
प्रतिभा और निष्कपटता की मिश्रण हो महागौरी मोक्ष प्रदान करती हो !!

सभी मनोरथ सिद्धियों को पूर्ण कर प्रत्यक्ष फल देती हो !
ब्रम्हांड विजय की क्षमता देने को सिद्धिदात्री बन जाती हो !!

शक्ति की तुम मूल तत्व हो तुम हो दुर्गे जननी हमारी !
तीनों देवों से सेवित हो तुम हो माता जग की दुलारी !!      

                     
                                              सेवाजीत पाठक 'अभेद्य'


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